Friday, June 17, 2011

जन लोकपाल विधेयक का मसविदा

जन लोकपाल विधेयक का मसविदा जिसे अन्ना हजारे के नेतृत्व वाली सिविल सोसायटी ने तैयार कर विचारार्थ विधेयक तैयार करने वाली समिति को प्रस्तुत किया है -

स विधेयक का मसविदा केन्द्र में लोकपाल नामक संस्था की स्थापना के लिए तैयार किया गया है. लेकिन इस विधेयक के प्रावधान इस तरह के होंगे ताकि प्रत्येक राज्य में इसी तरह की लोकायुक्त संस्था स्थापित की जा सके. 
 
जन लोकपाल विधेयक संस्करण 2.2
एक अधिनियम, जो केन्द्र में ऐसी प्रभावशाली भ्रष्टाचाररोधी और शिकायत निवारण प्रणाली तैयार करेगा, ताकि भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक प्रभावी तन्त्र तैयार हो सके और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वालों को प्रभावी सुरक्षा मुहैया कराई जा सके.

जन लोकपाल विधेयक का मसविदा

1. संक्षिप्त नाम और प्रारम्भ-
(1) इस अधिनियम को जन लोकपाल अधिनियम, 2010 कहा जा सकता है.
(2) अपने अधिनियमन के 120वें दिन यह प्रभावी हो जाएगा.

2. परिभाषाएं- इस अधिनियम में, जब तक कि सन्दर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-
(1) `कार्रवाई´ का अर्थ है किसी भी सरकारी कर्मचारी द्वारा अपने कर्र्तव्य के निर्वहन के लिए की गई कोई कार्रवाई और जिसमें निर्णय, संस्तुति या निष्कर्ष अथवा अन्य किसी प्रकार की कार्रवाई सम्मिलित है, इसमें जानबूझकर विफलता, चूक या इसी तरह की अभिव्यक्ति करने वाली कार्रवाई भी शामिल होगी
(2) `आरोप´ में किसी लोकसेवक के सम्बन्ध में निम्नलिखित में, से किसी भी बात की पुष्टि शामिल है-
क. वह सरकारी कर्मचारी है और कदाचार में लिप्त है
ख. भ्रष्टाचार में लिप्त है.
(3) `परिवाद´ में सम्मिलित है, कोई शिकायत या आरोप अथवा भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाने वाले व्यक्ति द्वारा सुरक्षा एवं उचित कार्रवाई के लिए किया गया अनुरोध.
(4) `भ्रष्टाचार´ के अन्तर्गत वे सभी कृत्य सम्मिलित है, जो भारतीय दण्ड संहिता के अध्याय 9 अथवा भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम, 1988 के तहत दण्डनीय तय किए गए हैं.
साथ ही यदि किसी व्यक्ति ने किसी कानून या नियम का उल्लंघन करते हुए सरकार से कोई लाभ लिया हो, वह व्यक्ति और उसके साथ ही वे लोक सेवक जिन्होंने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से लाभ लेने में उस व्यक्ति की सहायता की हो, भ्रष्टाचार में लिप्त माने जाएंगे.
(5) `सरकार´ अथवा `केन्द्र सरकार´ से आशय है ‘भारत सरकार’.
(6) शासकीय कर्मचारी´ से आशय है कोई व्यक्ति, जिसकी नियुक्ति किसी भी समय लोक सेवा अथवा केन्द्र सरकार या उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय से सम्बन्धित किसी पद के लिए, प्रतिनियुक्ति अथवा स्थायी, अस्थायी या अनुबन्ध के आधार पर हुई है या हुई थी, लेकिन इसमें न्यायाधीश शामिल नहीं होंगे.
(7) `शिकायत´ का अर्थ है किसी व्यक्ति द्वारा यह दावा कि उसे सिटीजन्स चार्टर के अनुसार और उस विभाग के जन शिकायत अधिकारी से सम्पर्क के बाद भी सन्तोषजनक समाधान नहीं मिल पाया.
(8) `लोकपाल´ से आशय है -
क. इस अधिनियम के अधीन एवं इस अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के अन्तर्गत निर्धारित कार्य के पालन हेतु गठित पीठें, अथवा
ख. इस अधिनियम के अन्तर्गत, या इस अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के अन्तर्गत बनाये गये विभिन्न नियमों, विनियमों या आदेशों के अन्तर्गत नियत, तरीके और सीमा में, अपनी शक्तियों का उपयोग करने वाला और अपने कर्तव्यों एवं जिम्मेदारियों का निर्वहन करने वाला कोई अधिकारी या कर्मचारी
ग. अन्य सभी प्रयोजनों के लिए, संस्था के तौर पर संयुक्त रूप से कार्यरत अध्यक्ष एवं सदस्य;
(9) `अल्प दण्ड´ और `प्रमुख दण्ड´ से आशय वही होगा जो केन्द्रीय लोक सेवा आचरण नियमों में परिभाषित है.
(10) `कदाचार´ का अर्थ है वही होगा जैसा कि केन्द्रीय लोक सेवा (आचरण) नियम में परिभाषित है और जिसमें सतर्कता का दृष्टिकोण हो
(11) `लोक प्राधिकरण´ में सम्मिलित है कोई प्राधिकरण अथवा निकाय अथवा स्वशासी संस्था जिसकी स्थापना या गठन-
क. संविधान द्वारा अथवा संविधान के अन्तर्गत हुआ हो
ख. संसद द्वारा बनाए गए किसी अन्य कानून द्वारा हुआ हो;
ग. सरकार द्वारा जारी अधिसूचना अथवा आदेश, और सरकारी स्वामित्व, नियन्त्रित अथवा पर्याप्त अंश से वित्तपोषित संस्था
(12) `लोक सेवक´ का अर्थ है, वह व्यक्ति जो किसी भी समय था अथवा है,-
क. प्रधानमन्त्री;
ख. मन्त्री;
ग. संसद सदस्य;
घ. उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश;
ङ. सरकारी कर्मचारी;
च. अध्यक्ष अथवा उपाध्यक्ष (यथा नाम) अथवा स्थानीय प्राधिकरण का कोई सदस्य, जो कि केन्द्रीय सरकार के नियन्त्रण में हो अथवा एक सांविधिक निकाय अथवा निगम जिसका गठन भारतीय संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून के अन्तर्गत हुआ हो, जिसमें सहकारी समिति भी सम्मिलित है, अथवा ऐसी सरकारी कम्पनी, जो कम्पनी अधिनियम 1956 की धारा 617 के अन्तर्गत अर्थ रखती हो, और सरकार द्वारा स्थापित कोई भी सांविधिक अथवा गैर सांविधिक समिति अथवा परिषद के सदस्य;
छ. इसमें वे सभी सम्मिलित हैं, जो भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम 1988 की धारा 2 (सी) में `लोकसेवक´ घोषित हैं.
ज. ऐसे अन्य प्राधिकारी, जो केन्द्र सरकार की अधिसूचना द्वारा, समय-समय पर उल्लिखित किए जाएं
(13) `सतर्कता दृष्टिकोण´ में सम्मिलित है-
क. भ्रष्टाचार की सभी गतिविधियां
ख. घोर लापरवाही अथवा जानबूझकर की गई लापरवाही, निर्णय लेने में कोताही, प्रणालियों और प्रकियाओं का घोर उल्लंघन, ऐसे मामलों में स्वविवेक अधिकार का अतिरेक जहां कोई प्रकट/सार्वजनिक हित स्पष्ट नहीं है, नियन्त्रणकर्ता अथवा वरिष्ठ अधिकारी को समय पर सूचित करने में चूक
ग. अपने अधीनस्थ कर्मचारियों द्वारा कर्तव्यों की उपेक्षा अथवा कार्यालय के दुरुपयोग की शिकायत मिलने पर भी कार्रवाई में असफलता/विलम्ब, यदि कानून के अन्तर्गत किसी अधिकारी का ऐसा दायित्व बनता है तो,
घ. प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से किसी के आचरण के माध्यम से भेदभाव में संलिप्तता.
ङ. भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाने वालों का उत्पीड़न
च. मामले के निस्तारण में किसी तरह का असंगत/अनुचित विलम्ब, सभी प्रासंगिक कारकों पर विचार करने के बाद, मामले में सतर्कता दृष्टिकोण की उपस्थिति निष्कर्ष को और सुदृढ़ता प्रदान करेगी.
छ. किसी से अनुचित पूछताछ या जांच, भ्रष्टाचार के दोषी को अनावश्यक मदद पहुंचाने अथवा निर्दोष को फंसाने के लिए.
ज. लोकपाल द्वारा समय-समय पर अधिसूचित कोई अन्य विषय सामग्री
(14) `भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाने वाला´ व्यक्ति वह है, जो किसी खतरे का सामना करता है -
क. पेशेगत नुकसान, जिसमें गैरकानूनी स्थानान्तरण, प्रोन्नति से इंकार, उपयुक्त अनुलाभ से इंकार, विभागीय कार्यवाही, भेदभाव सम्मिलित है पर सीमित नहीं अथवा
ख. शारीरिक क्षति अथवा
ग. वास्तव में इस तरह की क्षति;
जो कि या तो इस अधिनियम के अन्तर्गत लोकपाल से शिकायत करने, अथवा सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के अन्तर्गत याचिका दाखिल करने के कारण से सम्बन्धित है अथवा भ्रष्टाचार अथवा कुशासन को उजागर करने अथवा रोकने के उद्देश्य से की गई कोई अन्य विधिक कार्रवाई.

3. लोकपाल संस्था की स्थापना और लोकपाल की नियुक्ति:
(1) लोकपाल नामक एक संस्था होगी, जिसमें अपने अधिकारियों और कर्मचारियों के सहित एक अध्यक्ष और दस सदस्य होंगे.
(2) लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्यों का चुनाव उसी तरह होगा, जैसा कि इस अधिनियम में बताया गया है.
(3) लोकपाल के अध्यक्ष अथवा सदस्य के तौर पर नियुक्त व्यक्ति को, अपना कार्यभार सम्भालने से पूर्व, निर्धारित प्रारूप में राष्ट्रपति के समक्ष शपथ अथवा प्रतिज्ञान लेना होगा.
(4) इस अधिनियम के लागू होने के छ: माह के अन्दर सरकार पहले पहले लोकपाल के अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति सरकार करेगी, और सभी प्रचालन तन्त्र एवं परिसम्पत्तियों के साथ संस्था का गठन हो जाएगा.
(5) सरकार -
क. सेवानिवृत्ति, सदस्य अथवा अध्यक्ष की सेवानिवृत्ति के तीन माह पूर्व, अथवा
ख. किसी अन्य अनपेक्षित कारण से इस तरह की रिक्ति उत्पन्न होने के एक माह के भीतर. लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्य की नियुक्ति करेगी

4. लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्यगण कुछ विशेष कार्यालयों से सबन्द्ध नहीं रहेंगे-लोकपाल के अध्यक्ष एवं सदस्यगण संसद या किसी राज्य की विधायिका के मौजूदा सदस्य नहीं होंगे या किसी पद या लाभ के न्यास में (अध्यक्ष या सदस्य के पद के अलावा) नहीं रहेंगे या किसी अन्य व्यवसाय या पेशे में नहीं होंगे, अपना कार्यभार सम्भालने से पूर्व, लोकपाल का अध्यक्ष अथवा सदस्य चुना गया व्यक्ति -
(1) यदि वह किसी न्यास अथवा लाभ के पद पर है, उस पद से त्यागपत्र दे देगा, या
(2) यदि वह कोई व्यवसाय कर रहा है, उस व्यवसाय के कार्य व्यवहार अथवा प्रबन्धन से अपना सम्बन्ध समाप्त कर लेगा; या
(3) यदि वह किसी पेशे में है तो उस पेशे को स्थगित करना होगा
(4) यदि वह प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से किसी अन्य गतिविधि से जुड़ा हुआ है, जिसकी वजह से लोकपाल में उसके दायित्वों के प्रदर्शन में हितों का टकराव सम्भव है, उसे उस गतिविधि से अपना जुड़ाव खत्म कर देना होगा.
उपबन्ध किया गया है कि यदि उस काम के छोड़ देने के बाद भी, उस गतिविधि से जिससे वह पूर्व में जुड़ा था, से लोकपाल में उसके प्रदर्शन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की सम्भावना है, वह व्यक्ति लोकपाल का अध्यक्ष अथवा सदस्य नियुक्त नहीं किया जा सकेगा.

5. लोकपाल का कार्यकाल एवं अन्य सेवा शर्तें-
(1) लोकपाल के अध्यक्ष अथवा सदस्य के रूप में नियुक्त व्यक्ति का कार्यकाल कार्यभार ग्रहण करने की तिथि से पांच साल या 70 वर्ष की उम्र, जो भी पहले हो, होगा.
आगे यह भी उपबन्ध है कि
क. लोकपाल का अध्यक्ष अथवा सदस्य, राष्ट्रपति को सम्बोधित हस्तलिखित पत्र के जरिए पद त्याग सकता है;
ख. अध्यक्ष अथवा सदस्य को इस अधिनियम में निहित तरीके से पद से हटाया जा सकता है.
(2) अध्यक्ष और प्रत्येक सदस्य को प्रति माह क्रमश: भारत के मुख्य न्यायाधीश और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के बराबर वेतन मिलेगा.
(3) अध्यक्ष अथवा सदस्य के लिए देय भत्ते व पेंशन और अन्य सेवा शर्तें वहीं होंगी, जैसा निर्धारित किया जाए.
परन्तु अध्यक्ष अथवा सदस्य को देय भत्ते व पेंशन और अन्य सेवा शर्तें उसकी नियुक्ति के बाद उसके लिए बदली नहीं जाएंगी.
(4) लोकपाल कार्यालय के प्रशासनिक व्यय, जिसमें देय वेतन, भत्ते और पेंशन शामिल हैं, अथवा उस कार्यालय में कार्य कर रहे व्यक्तियों के सम्बन्ध में, भारत की संचित निधि पर भारित होगा.
(5) `लोकपाल निधि´ के नाम से एक अलग निधि होगी, जिसमें लोकपाल द्वारा लगाए गए दण्ड/जुर्माने जमा होंगे और जिसमें इस अधिनियम की धारा 19 के अन्तर्गत वसूले गए सार्वजनिक धन के नुकसान का 10 फीसदी भी सरकार द्वारा जमा किया जाएगा. इस निधि का निस्तारण पूरी तरह लोकपाल के विवेक पर होगा और इस निधि का प्रयोग लोकपाल को बढ़ाने/उन्नयन/बुनियादी सुविधाओं के विस्तार के लिए ही किया जाएगा.
(6) लोकपाल के अध्यक्ष एवं सदस्यगण भारत सरकार या किसी राज्य सरकार अथवा ऐसे किसी निकाय, जो सरकार द्वारा वित्तपोषित हो, में किसी भी पद पर नियुक्ति या संसद, राज्यों की विधायिका अथवा स्थानीय निकायों का चुनाव लड़ने के पात्र नहीं होंगे, यदि उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे देने के बाद अध्यक्ष अथवा सदस्य के तौर पर किसी भी अवधि के लिए कोई पद ग्रहण किया है. किसी सदस्य को अध्यक्ष नियुक्त किया जा सकता है, बशर्ते सदस्य और अध्यक्ष के तौर पर उसका कार्यकाल पांच वर्ष से अधिक न हो और कोई भी सदस्य अथवा अध्यक्ष पांच साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद पुनर्नियुक्ति या सेवा विस्तार का पात्र नहीं होगा.

6. अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति
(1) अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति एक चयन समिति की संस्तुति पर राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी.
(2) निम्नलिखित लोग लोकपाल के अध्यक्ष एवं सदस्य बनने के पात्र नहीं होंगे:
क. कोई व्यक्ति, जो भारत का नागरिक नहीं है.
ख. कोई व्यक्ति जिसे भारतीय दण्ड संहिता, अपराध संहिता अथवा किसी अन्य अधिनियम के तहत आरोपित किया गया हो अथवा सीसीएस आचरण नियमों के तहत दण्डित किया गया हो.
ग. कोई व्यक्ति जिसकी उम्र 40 वर्ष से कम हो.
घ. कोई व्यक्ति जो किसी भी सरकार की सेवा में था और पिछले दो वर्षों के भीतर कार्यालय छोड़ दिया था, या तो त्यागपत्र अथवा सेवानिवृत्ति के माध्यम से.
(3) लोकपाल के कम से कम चार सदस्य विधिक पृष्ठभूमि के होंगे. अध्यक्ष सहित दो से अधिक सदस्य पूर्व नौकरशाह नहीं होंगे.
स्पष्टीकरण: ‘कानूनी पृष्ठभूमि’ का तात्पर्य है कि वह व्यक्ति भारत में कम से कम दस सालों तक न्यायिक सेवा में पद सम्भाल चुका हो अथवा उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय में कम से कम 15 साल तक अधिवक्ता रहा हो.
(4) सदस्यों और अध्यक्ष की निष्ठा असन्दिग्ध हो और पूर्व में उन्होंने भ्रष्टाचार से लड़ने के संकल्प का प्रदर्शन किया हो.
(5) चयन समिति में निम्नलिखित लोग होंगे
क. भारत के प्रधानमन्त्री
ख. लोकसभा में नेता विपक्ष
ग. उच्चतम न्यायालय के सबसे कम उम्र के दो न्यायाधीश
घ. उच्च न्यायालयों के सबसे कम उम्र के दो न्यायाधीश
ङ. भारत के नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक
च. मुख्य निर्वाचन आयुक्त
छ. प्रथम चयन प्रक्रिया के बाद से लोकपाल के अध्यक्ष एवं सेवानिवृत्त होने वाले सदस्य,
(6) प्रधानमन्त्री चयन समिति के अध्यक्ष के रूप में कार्य करेगा.
(7) चयन समिति के विचारार्थ योग्य उम्मीदवारों की सूची तैयार करने हेतु एक खोज कमेटी होगी, जिसमें दस सदस्य होंगे
(8) खोज समिति के सदस्यों का चयन निम्नलिखित तरीके से होगा;
क. चयन समिति भारत के पूर्व नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षकों और भारत के मुख्य निर्वाचन आयुक्तों में से खोज समिति के पांच सदस्यों का चयन करेगी.
परन्तु निम्नलिखित लोग खोज समिति के सदस्य बनने के पात्र नहीं होंगे:
(i) कोई व्यक्ति जिसके विरुद्ध विधिवत (सारभूत) भ्रष्टाचार का आरोप लग चुका हो.
(ii) कोई व्यक्ति जो सेवानिवृत्ति के बाद किसी राजनीतिक दल में शामिल हो गया हो अथवा किसी राजनीतिक दल से उसका गहरा जुड़ाव रहा हो.
(iii) कोई व्यक्ति जो किसी भी रूप में सरकार की सेवा कर रहा हो.
(iv) कोई व्यक्ति जो सेवानिवृत्ति के बाद भी सरकारी कार्य कर रहा हो, उन कार्यों को छोड़कर जो कि उस पद के लिए आरक्षित हैं, जिससे वह सेवानिवृत्त हुआ हो.
ख. चयनित उपरोक्त पांच सदस्य, नागरिक समाज से पांच सदस्यों को मनोनीत करेंगे.
(9) खोज समिति ऐसे वर्ग के लोगों अथवा ऐसे व्यक्तियों से संस्तुति अमन्त्रित करेगी, जिन्हें वह इसके लिए उचित समझती हो. इस संस्तुति में अन्य विषयों के साथ-साथ अधोलिखित विवरण होने अनिवार्य हैं.
क. जिस प्रत्याशी की संस्तुति की गई है, उसका व्यक्तिगत विवरण.
ख. प्रत्याशी ने अतीत में अगर किसी कानूनी आरोप या नैतिक भ्रष्टाचार के आरोप का सामना किया है तो उसका पूरा विवरण.
ग. भ्रष्टाचार के खिलाफ अतीत में उसके द्वारा किए गए प्रयासों का लिखित प्रमाण.
घ. अतीत का ऐसा विवरण जो यह दर्शाता हो कि वह अपने विवेक से निर्णय करता है और किसी भी तरह उसे प्रभावित नहीं किया जा सकता, यदि कोई हो तो.
ङ. कोई अन्य सामग्री, जिसका निर्णय खोज समिति करे.
(10) चयन के लिए अधोलिखित प्रक्रिया का अनुसरण किया जाएगा -
क. प्रत्याशियों की सूची उनके समूचे विवरण के साथ, जो उन्होंने उपरोक्त प्रारूप में दिया हो, उसे वेबसाइट पर प्रदर्शित किया जाएगा.
ख. इन नामों पर जनता की प्रतिक्रिया मांगी जाएगी.
ग. खोज समिति इन प्रत्याशियों की पृष्ठभूमि और पहले किए गए कार्यों से सम्बन्धित सूचनाएं जुटाने के लिए कोई भी माध्यम इस्तेमाल कर सकती है.
घ. प्रत्याशियों के बारे में एकत्रित सभी सामग्री खोज समिति के हर सदस्य को अग्रिम तौर पर उपलब्ध कराई जाएगी. समिति के सदस्य हर प्रत्याशी का अपनी ओर से आंकलन करेंगे.
ङ. समिति मिलकर हरेक उम्मीदवार के बारे में प्राप्त सामग्रियों पर चर्चा करेगी. चयन मुख्यत: सर्वसम्मति के आधार पर किया जाएगा.
परन्तु जांच समिति के तीन या अधिक सदस्य अगर लिखित कारणों के आधार पर किसी सदस्य के चयन पर आपत्ति करते हैं तो उसका चयन नहीं किया जाएगा.
च. खोज समिति कुल रिक्तियों की तीन गुना संख्या के बराबर नामों की सूची बनाकर चयन समिति के विराचार्थ प्रस्तुत करेगी
छ. चयन समिति, रिक्तियों की संख्या के बराबर संख्या में प्रत्याशियों का चयन कर प्रधानमन्त्री को देगी. चयन मुख्यत: सर्वसम्मति के आधार पर किया जाएगा.
परन्तु अगर चयन समिति के तीन या अधिक सदस्य किसी सदस्य के चयन का विरोध लिखित रूप में देते हैं, तो उस व्यक्ति का चयन नहीं होगा.
ज. खोज समिति की सभी बैठकें और सभी चयन की वीडियो रिकॉर्डिंग होगी और इसे सार्वजनिक किया जाएगा.
(11) चयन समिति द्वारा तय किए गए नामों की अनुशंसा प्रधानमन्त्री तत्काल राष्ट्रपति से करेंगे, जो इस अनुशंसा प्राप्ति के एक महीने के भीतर नियुक्ति का आदेश जारी करेंगे.
(12) अगर चयन समिति का कोई सदस्य चयन प्रक्रिया के जारी रहने के दौरान ही सेवानिवृत हो जाता है तो उस स्थिति में वह सदस्य चयन समिति में तब तक बना रहेगा, जब तक कि चयन प्रक्रिया पूरी न हो जाए.

7. अध्यक्ष अथवा सदस्यों को हटाना -
(1) अध्यक्ष या किसी सदस्य को केवल राष्ट्रपति के आदेश से तभी उसके पद से हटाया जा सकता है जबकि निम्न में से कोई एक या अधिक आधार हो -
क. कदाचार प्रमाणित होने पर
ख. पेशागत, मानसिक या शारीरिक अक्षमता
ग. दिवालिया
घ. नैतिक भ्रष्टाचार से सम्बद्ध आरोप लगने पर
ङ. पद पर रहते हुए किसी दूसरे वैतनिक कार्यों में लिप्त पाए जाने पर
च. ऐसे आर्थिक लाभ या अन्य लाभ हासिल करने पर जो उस व्यक्ति के सदस्य या अध्यक्ष के रूप में कार्य को प्रभावित कर सकता है.
छ. अपने पास विचाराधीन मामले में, किसी का पक्ष लेने के उद्देश्य से अथवा किसी को फंसाने के उद्देश्य से, बाहरी प्रभाव द्वारा निर्देशित/संचालित होने पर
ज. किसी सरकारी अधिकारी को अनुचित रूप से प्रभावित करने या प्रभावित करने का प्रयास करने पर.
झ. ऐसी कोई चूक या ऐसा कोई कार्य करने पर, जो भ्रष्टाचार निरोधी कानून के तहत दण्डनीय है, या किसी कदाचार में लिप्त पाए जाने पर.
ञ. यदि कोई सदस्य या अध्यक्ष किसी भी तरीके से, भारत सरकार अथवा किसी प्रदेश सरकार द्वारा या उसके किसी अधिकारी या उसके प्रतिनिधि द्वारा स्थापित अनुबन्ध या समझौते में रुचि रखता हो या उससे सम्बद्ध हो, या उससे होने वाले लाभों से अथवा उससे होने वाली किसी तरह की आय से सदस्य के अलावा किसी और तरह से सम्बन्ध रखता हो, या किसी निगमित कम्पनी से सम्बद्ध हो, उसे कदाचार का दोषी समझा जाएगा.
(2) लोकपाल के किसी सदस्य या अध्यक्ष को निष्कासित करने के लिए अधोलिखित प्रक्रिया का अनुसरण करना होगा.
क. कोई भी व्यक्ति लोकपाल के एक या अधिक सदस्यों या अध्यक्ष के खिलाफ ठोस सबूत पेश करते हुए उसके निष्कासन की याचिका पेश कर सकता है.
ख. ऐसी याचिका प्राप्त होने पर सुप्रीम कोर्ट इसकी सुनवाई करेगा और अधोलिखित में से एक या एक से अधिक कदम उठा सकता है:
(i) सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त विशेष जांच दल को जांच का आदेश, यदि प्रथम दृष्टया इसकी आवश्यकता महसूस होती है और अगर सम्बन्धित पक्षों द्वारा दायर हलफनामों से इसका निर्णय करना सम्भव न हो सके. विशेष जांच दल तीन महीने के अन्दर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा.
(ii) विशेष जांच दल द्वारा उपबन्ध (1) के तहत जांच लम्बित होने पर, उस सदस्य से आंशिक अथवा पूरा काम वापस ले लेने का आदेश देना
(iii) कोई मामला न बनने की स्थिति में याचिका रद्द करना
(iv) आधारों की पुष्टि होने पर, सम्बन्धित सदस्य अथवा अध्यक्ष को हटाने की अनुशंसा राष्ट्रपति के पास भेजना
(v) यदि प्रथमदृष्टया भ्रष्टाचार निरोधी कानून या किसी अन्य कानून के तहत किसी दण्डनीय अपराध का मामला बनता हो तो समुचित एजेंसी को केस दर्ज करने और जांच का निर्देश देना
ग. सुप्रीम कोर्ट के पांच वरिष्ठतम न्यायधीशों के पैनल की पीठ बनेगी. परन्तु अगर इन न्यायाधीशों में से कोई भी कभी चयन समिति का सदस्य रहा हो या जिसके खिलाफ कोई मामला लोकपाल के समक्ष लम्बित हो, वह उस पीठ का सदस्य नहीं हो सकेगा.
घ. सुप्रीम कोर्ट ऐसी याचिकाओं को इस आधार पर ख़ारिज नहीं कर सकता कि उसके खिलाफ पहले से ऐसा ही मामला विचाराधीन है.
ङ. अगर सुप्रीम कोर्ट को लगता है कि याचिका नुकसान पहुंचाने की मंशा या बुरी नीयत से दायर की गई है तो अदालत शिकायतकर्ता पर जुर्माना लगा सकती है या उसे एक साल तक कैद की सजा सुना सकती है.
च. सुप्रीम कोर्ट से उपयुर्क्त उपबन्ध (ख)(iv) में अनुशंसा मिलने की स्थिति में प्रधानमन्त्री, सदस्य या सदस्यों अथवा लोकपाल के अध्यक्ष को तत्काल हटाए जाने की अनुशंसा राष्ट्रपति से करनी होगी जो उस सदस्य या सदस्यों अथवा अध्यक्ष को अनुंशसा प्राप्त होने के एक महीने के भीतर हटाने का आदेश जारी करेंगे.

लोकपाल की शक्तियां एवं कार्य
8. लोकपाल के कार्य:
(1) लोकपाल ऐसी शिकायतों की प्राप्तियों के लिए उत्तरदायी होगा जिनमें-
क. जिसमें भ्रष्टाचार निरोधक कानून के अधीन चूक के आरोप हों या दण्डनीय — कृत्य के आरोप लगाए गए हों,
ख. जहां सरकारी सेवक पर दुर्व्यवहार के आरोप हों,
ग. शिकायत
घ. भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों से मिली शिकायतें,
ङ. लोकपाल के कर्मचारियों के खिलाफ शिकायतें
(1क) अपने कर्मचारियों की अखण्डता सुनिश्चित करना, चाहे वह स्थाई हों अथवा अन्य, लोकपाल का मुख्य कर्तव्य होगा. लोकपाल इसे यह सुनिश्चित करने के लिए पूर्णत सक्षम एवं सशक्त होगा.
(2) लोकपाल, जांच एवं पूछताछ के बाद, जैसा वह उचित समझे, निम्नलिखित कार्यों में से एक या एकाधिक कार्रवाई कर सकता है:
क. अगर प्रथम दृष्टया शिकायत नहीं बनती है तो मामला बन्द करना, अथवा
ख. सरकारी कर्मचारी और साथ ही साथ उस व्यक्ति, जो इस कृत्य में पक्षकार है, के खिलाफ आरोप- पत्र दाखिल करना
ग. अगर सरकारी कर्मचारी भ्रष्टाचार निरोधक कानून के अधीन अन्तत: दोषी पाया जाता है तो सुसंगत आचार संहिता के तहत उस पर युक्तियुक्त दण्ड आरोपित करने की अनुशंसा करना और उस सरकारी कर्मचारी की बर्खास्तगी की भी सुनिश्चित सिफारिश करना
घ. जांच के अधीन विषयगत यदि किसी लाइसेंस या पट्टा या स्वीकृति या ठेका या समझौते को रद्द करने अथवा संशोधित करने का आदेश दे सकता है
ङ. अगर भ्रष्टाचार के कृत्य में सम्बन्धित प्रतिष्ठान या कम्पनी या ठेकेदार या किसी अन्य को शामिल पाया जाता है तो उसे प्रतिबन्धित सूची में डालने का आदेश देना
च. इस अधिनियम के प्रावधानों के मुताबिक, समुचित अधिकारियों को शिकायतों के निवारण के लिए उपयुक्त दिशा निर्देश जारी करना
छ. अगर लोकपाल के आदेश का विधिवत अनुपालन नहीं होता है, तो उन आदेशों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए इस अधिनियम के तहत आदेश जारी करना
ज. इस अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के अनुसार भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए जरूरी कार्रवाई करना
(3) अगर किसी भी मामले में लोकपाल को किसी स्रोत से जानकारी हो है, तो वह इस अधिनियम के अन्तर्गत, अगर इस तरह का कोई मामला उपबन्ध (1) की धारा (क), (ख), (ग) या (घ) में उल्लेखित है, स्वत: संज्ञान लेते हुए कार्रवाई कर सकता है.
(4) समय-समय पर जरूरत पड़ने पर समुचित अधिकारी को उनके कामकाज, प्रशासन एवं अन्य व्यवस्था में परिवर्तन के लिए दिशा-निर्देश जारी कर सकता है, ताकि भ्रष्टाचार, दुर्व्यवहार, जन शिकायत एवं भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों की प्रताड़ना की गुंजाइश और सम्भावना कम हो सके
(5) इस धारा की उपधारा (2) (ग) के अन्तर्गत लोकपाल द्वारा जारी किए गए आदेश सरकार के लिए बाध्यकारी होंगे और आदेश मिलने के एक सप्ताह के अन्दर उसका कार्यान्वयन जरूरी होगा.
(6) भ्रष्टाचार निरोधक कानून की धारा 19 को समाप्त कर दिया जाएगा. इस अधिनियम के कार्यान्वयन में दिल्ली विशेष पुलिस संस्थापना अधिनियम की धारा 6-क लागू नहीं होगी.
(7) इस अधिनियम की किसी भी कार्यवाही में अपराध प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 197 लागू नहीं होगी. किसी भी कानून के तहत लोकपाल से एक बार स्वीकृति मिल जाने के बाद, ऐसी सभी स्वीकृतियां, जो आरम्भिक जांच के लिए जरूरी हैं, प्रदत्त मानी जाएंगी.

9. सर्च वारण्ट जारी होना आदि-
(1) जहां लोकपाल, अपने पास उपलब्ध सूचना के आधार पर
क. अगर यह यकीन करने का कोई कारण देखता है, कि कोई व्यक्ति-
(i) जिसे इस अधिनियम के अन्तर्गत सम्मन या नोटिस जारी किया गया है या जारी किया जा सकता है, जो किसी जांच के लिए ज़रूरी या उपयोगी कोई सम्पत्ति दस्तावेज या अन्य कोई वस्तु प्रस्तुत नहीं करेगा, या नहीं कर पाएगा, या प्रस्तुत नहीं करने की वजह होगा,
(ii) जिसके कब्जे में मुद्रा, स्वर्ण, आभूषण या दूसरी मूल्यवान चीजें या वस्तुएं हैं और ऐसी मुद्रा, स्वर्ण, आभूषण या दूसरी मूल्यवान चीजें हैं जिनकी घोषणा, सम्पत्ति की घोशणा करने सम्बन्धी किसी भी प्रभावी कानून के अन्तर्गत सक्षम प्राधिकार के समक्ष, अंशत: या पूर्णत: नहीं की गई है
ख. विचार करता हो कि उसके द्वारा आरम्भ की गई किसी भी जांच या अन्य कार्रवाई का उद्देश्य, सामान्य खोज या निरीक्षण द्वारा पूरा होगा,
सर्च वारण्ट के ज़रिए किसी ऐसे पुलिस अधिकारी को, जिसका ओहदा पुलिस इंस्पेक्टर से नीचे नहीं होगा, तलाशी लेने, निरीक्षण करने के लिए तदानुसार अधिकृत करेगा, और ऐसा करने के लिए वह अधिकारी-
(i) किसी भी इमारत या स्थान, जहां उसे ऐसी किसी सम्पत्ति, दस्तावेज, रकम, स्वर्ण, आभूषण या अन्य मूल्यवान वस्तु के रखे जाने के सन्देह का कारण हो, वह प्रवेश कर सकेगा और तलाशी ले सकेगा.
(ii) किसी ऐसे व्यक्ति की तलाशी ले सकेगा जिस पर कि स्वयं को छिपाने या किसी वस्तु को छिपाने का सन्देह हो.
(iii) वह उप नियम-(i) के अन्तर्गत प्राप्त शक्तियों के तहत ऐसा कोई भी दरवाजा, बक्सा, लॉकर, सेफ, आलमारी या अन्य पात्र धारक का ताला तोड़ सकेगा जिसकी चाबी उपलब्ध नहीं है.
(iv) ऐसी तलाशी में प्राप्त किसी सम्पत्ति, दस्तावेज, रकम, स्वर्ण, आभूषण या अन्य कीमती चीजों जब्त करे
(v) किसी भी सम्पत्ति या दस्तावेज पर पहचान के चिन्ह बनाए ताकि कोई उसे निकाल न सके अथवा उसकी नकल न कर सकें.
(vi) ऐसी किसी भी सम्पत्ति, दस्तावेज, पैसे, स्वर्ण, आभूषण या अन्य मूल्यवान वस्तुओं या चीजों को सूचीबद्ध कर दर्ज किया जाएगा.
(2) उपधारा (1) के तहत तलाशी एवं जब्ती में, यथासम्भव, अपराध प्रक्रिया संहिता, 1973 के सम्बन्धित प्रावधान लागू होंगे
(3) उपधारा (1) के अधीन सभी उद्देश्यों के लिए जारी सभी वारण्ट, अपराध प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 93 के अधीन अदालत द्वारा जारी वारण्ट समझा जाएगा.

10. साक्ष्य-
(1) इस अधिनियम के प्रावधानों के अन्तर्गत किसी भी जांच के उद्देश्य से, (अगर कोई प्रारम्भिक जांच है, सहित) लोकपाल किसी भी सरकारी कर्मचारी या कोई अन्य व्यक्ति, जो उनकी राय में किसी जांच के लिए प्रासंगिक सूचना उपलब्ध कराने या दस्तावेज देने में सक्षम है, सूचना देने अथवा दस्तावेज़ प्रस्तुत कराने के लिए तलब कर सकेगा.
(2) लोकपाल को नागरिक प्रक्रिया संहिता, 1908 के अन्तर्गत कोई याचिका दायर करते हुए, निम्नलिखित मामलों में, ऐसी किसी भी जांच के उद्देश्य से (आरम्भिक जांच सहित) वे सारी शक्तियां प्राप्त होंगी जो नागरिक प्रक्रिया संहिता, 1908 के अन्तर्गत किसी प्रकार का निपटारा करते हुए दीवानी न्यायालय को प्राप्त हैं -
क. किसी भी व्यक्ति को उपस्थित रहने के लिए बाध्य करने और उसे सम्मन जारी करने और उससे शपथ लेना;
ख. किसी भी दस्तावेज की खोज एवं उसे प्रस्तुत करना;
ग. हलफनामे पर साक्ष्य प्राप्त करना;
घ. किसी न्यायालय या कार्यालय से कोई सार्वजनिक रिकार्ड या उसकी प्रतिलिपि हासिल करना;
ङ. दस्तावेज या गवाह की जांच के के लिए आदेश जारी करना;
च. गलत या अफसोसनाक दावा या रक्षा के आलोक में क्षतिपूर्ति भुगतान का आदेश;
छ. देरी के लिए हर्जाने का आदेश
ज. ऐसे अन्य मामले, जिन्हें निर्धारित किया जा सकता है
(3) लोकपाल के सम्मुख कोई भी कार्रवाई भारतीय दण्ड संहिता की धारा 193 के अर्थ में एक न्यायिक कार्रवाई समझी जाएगी.

11. लोकपाल की रिपोर्ट इत्यादि-
(1) लोकपाल के अध्यक्ष, प्रतिवर्ष, राष्ट्रपति को अपने कार्य निष्पादन पर, निर्धारित प्रारूप में प्रतिवेदन पेश करेंगे.
(2) राष्ट्रपति, प्रतिवेदन की प्रति, व्याख्यात्मक ज्ञापन देते हुए संसद के दोनों सदनों में रखवाएंगे.
(3) लोकपाल हरेक महीने अपनी वेबसाइट पर ऐसे मामलों की एक सूची, संक्षिप्त विवरण, परिणाम एवं कृत अथवा प्रस्तावित कार्रवाई के विवरण के साथ प्रकाशित करेगा, इस वेबसाइट पर पिछले एक महीने में लोकपाल द्वारा प्राप्त मामलों की सूची, निपटाए गए, और लम्बित पड़े मामलों की सूची भी भी प्रकाशित की जाएगी.

12. लोकपाल एक मान्य पुलिस अधिकारी होगा
(1) अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 36 के उद्देश्य के लिए, लोकपाल के अध्यक्ष, सदस्य और इसकी जांच शाखा के अधिकारियों को पुलिस अधिकारी माना जाएगा.
(2) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तहत किसी अपराध की छानबीन करते हुए वे उस मामले में किसी दूसरे कानून के अन्तर्गत किसी अपराध की जांच के लिए भी सक्षम होंगे.

13. आदेशों की अवज्ञा में लोकपाल की शक्ति-
(1) लोकपाल के प्रत्येक आदेश में उन अधिकारियों का नाम पूरी तरह स्पष्ट किया जाएगा, जो उसे अमल में लाएंगे, आदेश के अमल में लाने की प्रक्रिया और उसके अनुपालन की समय सीमा का विवरण भी स्पष्ट दिया जाएगा.
(2) अगर लोकपाल के आदेश का क्रियान्वयन निर्धारित प्रक्रिया और समय सीमा के भीतर नहीं होता है तो लोकपाल अवमानना के दोषी अधिकारियों पर जुर्माना लगाने का निर्णय ले सकता है.
(3) सम्बन्धित विभाग के आरेखण और संवितरण अधिकारी को, उपधारा (2) के तहत जारी आदेश में उल्लेखित, जुर्माना अधिकारियों के वेतन में से काटने का निर्देश दिया जाएगा.
परन्तु जिन अधिकारियों पर जुर्माना लगेगा, उन्हें सुनवाई का एक मौका दिए बिना उनका वेतन नहीं कटेगा. यह भी कि अगर आरेखण और संवितरण अधिकारी इन अधिकारियों का वेतन काटने में असमर्थ होता है तो वह स्वंय ही इस दण्ड के लिए उत्तरदायी होगा.
(4) अपने आदेश की अनुपालना कराने के लिए, लोकपाल के पास वे सभी अधिकार क्षेत्र, शक्तियां एवं अधिकार होंगे जोकि उच्च न्यायालय के पास हैं, और लोकपाल अपनी अवमानना के सम्बन्ध में इनका प्रयोग कर सकेगा, और इस उद्देश्य के लिए न्यायालय की अवमानना अधिनियम १९७१ (1971 का केन्द्रीय अधिनियम 70) को संशोधित करते उच्च न्यायालय के लिए निहित सन्दर्भ में लोकपाल की अवमानना को भी शामिल किया जाता है.

13क. भ्रष्टाचार अधिनियम की निवारण धारा 4 के तहत विशेष न्यायाधीश
(1) वार्षिक आधार पर, लोकपाल विशेष भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम 1988 की धारा 4 के तहत हर क्षेत्र में न्यायाधीशों की संख्या का आंकलन करेगा और सिफारिश के तीन महीने के भीतर ही सरकार उतनी ही संख्या में न्यायाधीशों की नियुक्ति करेगी.
परन्तु यह भी कि लोकपाल विशेष न्यायाधीशों की उतनी ही संख्या की सिफारिश करेगा जितनी कि इस अधिनियम के तहत प्रत्येक मामले का निपटारा एक वर्ष के भीतर होने के लिए आवश्यक होंगी.
(2) कोई नई नियुक्ति करने से पहले, सरकार, उम्मीदवारों की निष्ठा सुनिश्चित करने हेतु, चयन प्रक्रिया पर लोकपाल से परामर्श करेगी. सरकार उन सिफारिशों को लागू भी करेगी.
13ख. अनुरोध पत्र जारी करना: लोकपाल की खण्डपीठ को लोकपाल में लम्बित किसी मामले में अनुरोध पत्र (एक न्यायाधीश को दूसरे न्यायाधीश द्वारा जारी किए जाना वाला) जारी करने का अधिकार होगा.
13ग. भारतीय तार अधिनियम के तहत अधिकार: लोकपाल की खण्डपीठ, भारतीय तार अधिनियम की धारा 5 के तहत पदनामित प्राधिकरण मान्य होगी. इस पीठ को टेलीफोन, इण्टरनेट अथवा भारतीय तार अधिनियम तथा, सूचना और प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 तथा भारतीय तार अधिनियम 1885 के तहत जारी नियमावली के सहित, दायरे में आने वाले अन्य माध्यम इत्यादि पर संचरित सन्देशों, आकड़ों और आवाजों पर निगरानी रखने या उन्हें रोककर सुनने का अधिकार होगा.

लोकपाल की कार्यप्रणाली
14. लोकपाल की कार्यप्रणाली:
(1) अध्यक्ष लोकपाल की संस्था के समग्र प्रशासन और पर्यवेक्षण के लिए उत्तरदायी होगा.
(2) नीति-नियम निर्धारण सहित लोकपाल के कामकाज के लिए आन्तरिक प्रणाली विकसित करने, लोकपाल में विभिन्न अधिकारियों को कार्य देने, लोकपाल में विभिन्न पदाधिकारियों को अधिकार देने जैसे कार्य लोकपाल के अध्यक्ष एवं सदस्यों द्वारा एक संस्था के तौर पर सामूहिक रूप से किए जाएंगे.
(3) लोकपाल के अध्यक्ष की प्रधानमन्त्री के साथ वित्त और कर्मचारियों की जरूरत के आकलन के लिए वार्षिक बैठक होगी. इस बैठक में हुए निर्धारण के आधार पर सरकार द्वारा लोकपाल को संसाधन प्रदान कराए जाएंगे.
(3क) निर्धारित व्यय भारत के समेकित निधि से दिया जाएगा.
(3ख) लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्य अपने कर्मचारियों की अखण्डता और सभी तरह की पूछताछ और जांच की अखण्डता सुनिश्चित करने के लिए हर सम्भव कदम उठाएंगे. इस उद्देश्य के लिए वे अयोग्य अथवा भ्रष्ट कर्मियों को त्वरित सज़ा देने हेतु नियम बनाने, काम का मानदण्ड निर्धारित करने, प्रक्रिया निर्धारित करने अथवा अन्य कोई कदम उठाने के लिए सक्षम होंगे.
(3ग) लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्य अधिनियम द्वारा सुनिश्चित समय सीमा का कड़ाई से पालन कराने के लिए ज़िम्मेदार होंगे और समुचित कदम उठाने के लिए सक्षम होगें.
(3घ) लोकपाल पूरी तरह से प्रशासनिक, वित्तीय और कार्यात्मक सहित सभी मामलों में सरकार के हस्तक्षेप से स्वतन्त्र होगा.
(4) लोकपाल तीन या अधिक सदस्यों की पीठ में कार्य करेगा. इस पीठ का गठन आक्रमिक तरीके से होगा और उन्हें मामले कम्प्यूटर के द्वारा आक्रमिक तरीके से सौंपे जाएंगे. प्रत्येक पीठ में कम से कम एक सदस्य विधिक पृष्ठभूमि वाला होगा.
(5) इन पीठों का दायित्व होगा :
क. कुछ विशिष्ट श्रेणी के मामलों में अभियोजन आरम्भ करने की अनुमति देना
ख. अपने कर्मचारियों के खिलाफ शिकायत सुनना
ग. लोकपाल के अधिकारियों द्वारा जांच अथवा सतर्कता के बन्द कर दिए मामले या लोकपाल द्वारा समय-समय पर निर्धारित की गई श्रेणी के, मामलों में अपील
घ. ऐसे अन्य आदेशों के लिए, जिनका निर्णय समय-समय पर लोकपाल द्वारा लिया जा सकता है.
परन्तु लोकपाल कि पूरी पीठ मापदण्ड बनाएगी कि किस तरह के मामले सदस्यों की पीठ देखेगी और कौन से मामलों का निर्णय मुख्य सतर्कता अधिकारी या सतर्कता अधिकारियों के स्तर पर होगा. ये मापदण्ड सरकार को हुए घाटे और/या जनता पर उसके असर और/या दोषी की स्थिति पर आधारित हो सकते हैं.
लोकपाल स्वत: जांच-पड़ताल करने का निर्णय ले सकता है.
(6) कैबिनेट के किसी भी सदस्य के खिलाफ लोकपाल की पूरी पीठ जांच-पड़ताल या अभियोग शुरू कर सकती है.
(7) इस अधिनियम के प्रावधान के अन्तर्गत कुछ मुद्दों पर लोकपाल की पूरी पीठ निर्णय लेगी. उस पीठ में कम से कम सात सदस्य होंगे.
(8) लोकपाल की बैठक के कार्य विवरण और दस्तावेज सार्वजनिक होंगे.

15. लोकपाल के पास शिकायत दर्ज कराना:
(1) इस अधिनियम के प्रावधानों के अधीन, कोई भी व्यक्ति लोकपाल को इस अधिनियम के तहत शिकायत दर्ज करा सकता हैं.
बशर्ते इस शिकायत के मामले में, यदि व्यक्ति मर चुका है या किसी भी कारण से वह खुद यह कार्य करने में असमर्थ है, तो यह उस व्यक्ति के वैधानिक प्रतिनिधि या उसके द्वारा लिखित रूप से अधिकृत किसी अन्य व्यक्ति द्वारा शिकायत दर्ज कराई जा सकती है और यदि शिकायत हो चुकी है तो लिखित तौर अधिकृत प्रतिनिधि के द्वारा शिकायत को जारी रखा जा सकता हैं.
यह भी कि नागरिक अपनी शिकायत देश में कहीं भी लोकपाल के किसी भी कार्यालय में दर्ज करा सकते हैं. लोकपाल कार्यालय का यह कर्र्तव्य होगा कि वह अपने तहत किसी युक्तियुक्त लोकपाल अधिकारी को शिकायत पत्र हस्तान्तरित कर दे.
(2) शिकायत किसी सादे कागज पर भी लिखकर दर्ज कराई जा सकती है परन्तु उसमें लोकपाल द्वारा निर्धारित सभी विवरण शामिल होने चाहिए.
(2क) अपनी वार्षिक रिपोर्ट संसद में प्रस्तुत करने के बाद, भारत के नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक ऐसे सभी मामलों को लोकपाल को अग्रेशित करेंगे, जो इस अधिनियम के अन्तर्गत आरोप निर्धारित करते हैं और लोकपाल उन पर इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप ही कार्य करेगा.
(3) शिकायत प्राप्त होने पर, लोकपाल यह फैसला करेगा कि यह आरोप है या शिकायत या भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले की सुरक्षा के लिए अनुरोध है या दोनों का मिश्रण है या इससे कुछ अधिक है.
(4) लोकपाल को हर शिकायत अनिवार्य तौर पर निपटानी होगी.
परन्तु शिकायतकर्ता को सुनवाई का अवसर दिए बिना किसी शिकायत को बन्द नहीं किया जाएगा.

16. लोकपाल द्वारा जिन मामलों की जांच की जा सकती है- इस अधिनियम के प्रावधानों के अधीन लोकपाल किसी ऐसे कार्य की जांच कर सकता है जो किसी लोकसेवक के द्वारा किया गया हो, अथवा उसकी सामान्य या विशिष्ट स्वीकृति से किया गया हो, जिसकी शिकायत की रिपोर्ट की गई हो अथवा ऐसे कार्य के बारे में कोई आरोप लगाया गया हो.
परन्तु लोकपाल इस तरह के कार्य की स्वत: अथवा सरकार द्धारा कहे जाने पर भी जांच कर सकता है, यदि उसकी लिखित राय में ऐसे काम में कोई शिकायत या आरोप हो या होने की सम्भावना हो.

17. वे मामले जो जांच के दायरे से बाहर होंगे
(1) लोकपाल, अधिनियम के अन्तर्गत निम्न कार्रवाई के सम्बन्ध में शिकायत के मामले में, कोई जांछ नहीं करेगा -
क. यदि शिकायतकर्ता के पास किसी अन्य कानून द्वारा प्रदत्त किसी प्राधिकरण के सामने अपील, पुनरीक्षण, समीक्षा या किसी अन्य माध्यम से कोई निवारण है, या था और उसने उसका उपयोग नहीं किया है.
ख. न्यायिक व अर्द्ध न्यायिक निकायों द्वारा लिए गए निर्णय जब तक कि शिकायतकर्ता दुर्भावनापूर्ण होने का आरोप न लगाए.
ग. यदि पूरी शिकायत तात्विक रूप में किसी न्यायालय या सक्षम न्याय अधिकार क्षेत्र की अर्ध- न्याययिक संस्था के समक्ष लम्बित है
घ. ऐसी कोई शिकायत जहां इसे निपटान करने में अत्यधिक एवं अबोध्य विलम्ब हो.
(2) इस अधिनियम में ऐसा कुछ भी नहीं है कि लोकपाल संसद के किसी सदन के पीठासीन अधिकारी की स्वीकृति लेने के बाद ही किसी कार्रवाई की जांच करेगा.
(3) इस अनुच्छेद की कोई बात लोकपाल को कदाचार या भ्रष्टाचार या भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले की सुरक्षा के खिलाफ शिकायत दर्ज करने से नहीं रोक सकती है.

18. शिकायत और जांच से सम्बन्धित प्रावधान-
(1) क. लोकपाल, किसी शिकायत, आरोप के रूप में प्राप्त किसी शिकायत अथवा दोनों, या स्वत: संज्ञान से उठाए गए किसी मामले में, दस्तावेज़ों को देखते हुए, जांच या पूछताछ की प्रक्रिया शुरू करने का निर्णय ले सकता है, या जांच और पूछताछ की प्रक्रिया की सुनवाई के पहले प्रारम्भिक जांच का निर्णय ले सकता है या किसी दूसरे व्यक्ति को प्रारम्भिक जांच करने का निर्देश दे सकता है ताकि किसी जांच के लिए उचित आधार है या नहीं यह तय किया जा सकें. प्राथमिक जांच के परिणाम आते ही इसकी जानकारी, और यदि मामले को बन्द करने का निर्णय लिया जाता है तो जांच के दौरान एकत्र की गई समस्त सामग्री शिकायकर्ता को उपलब्ध कराई जाएगी.
साथ ही यह भी कि यदि, किसी मामले को बन्द किया जाता है तो उससे सम्बन्धित सभी दस्तावेज सार्वजिनक माने जाएंगे. हर महीने, बन्द किए गए ऐसे मामलों की सूची, मामले को बन्द किए जाने के कारण सहित, वेबसाइट पर डाली जाएगी. इस तरह बन्द किए गए मामलों से सम्बन्धित सारी सामग्री सूचना के अधिकार के कानून के तहत, जानकारी मांगने वाले किसी भी व्यक्ति को, उपलब्ध कराई जाएगी
परन्तु साथ ही यह भी कि किसी भी शिकायत या आरोप को, शिकायतकर्ता के उद्देश्य अथवा प्रेरणा के आधार पर खारिज़ नहीं किया जा सकेगा.
साथ ही यह भी कि, लोकपाल के समक्ष की गई सभी सुनवाइयों की वीडियो रिकार्डिंग होगी और किसी भी व्यक्ति को, प्रतियां बनाने के मूल्य अदा करने पर, उपलब्ध कराई जाएगी.
ख. किसी शिकायत की प्रारम्भिक जांच के लिए प्रक्रिया लोकपाल द्वारा मामले की परिस्थियों के आधार पर तय की जाएगी और यदि आवश्यक प्रतीत होता है तो लोकपाल सम्बन्धित लोक सेवक से टिप्पणी भी आमन्त्रित कर सकता है.
परन्तु यह भी कि, प्राथमिक जांच पूरी करने और मुकदमे को बन्द करने या जांच के लिए आगे बढ़ाने का निर्णय शिकायत प्राओत करने के एक माह के अन्दर और निश्चित तौर पर तीन माह के अन्दर ले लिया जाएगा. यदि एक महीने में जांच पूरी नहीं हो पाती वहां जांच पूरी होने पर विलम्ब का कारण लिखित तौर पर दर्ज कर के सार्वजनिक किया जाएगा.
ग. इस अधिनियम के तहत कोई भी शिकायत गुमनाम स्वीकार नहीं की जाएगी. शिकायतकर्ता को लोकपाल के पास अपनी पहचान ज़ाहिर करनी होगी. तथापि यदि शिकायकर्ता चाहता है तो लोकपाल द्वारा उसकी पहचान गोपनीय रखी जाएगी.
(2) जहां लोकपाल सीधे सीधे या प्रारम्भिक जांच के बाद इस अधिनियम के अन्तर्गत जांच प्रस्तावित करता है, तो-
क. जरुरी समझने पर जांच से सम्बन्धित दस्तावेजों को सुरक्षित स्थान पर रखने का निर्देश दे सकता है.
ख. जांच के उचित चरण पर या खत्म होने पर, जांच रिपोर्ट की प्रति, उसके निष्कर्ष एवं निष्कर्ष से सम्बन्धित आधार सामिग्री की प्रति सम्बन्धित लोक सेवक और शिकायतकर्ता को अग्रेशित की जाएगी.
ग. सम्बन्धित लोक सेवक और शिकायतकर्ता को टिप्पणी और सुनवाई का मौका दिया जाएगा.
साथ ही यह भी कि अति विशिष्ट परिस्थितियों को छोड़ कर ऐसी सुनवाई सार्वजनिक रूप से की जाएगी, और उसे लिखित तौर पर रिकार्ड किया जाएगा, जहां यह सार्वजनिक हित में नहीं है, न्याय के हित के लिए इसे कैमरे में रिकार्ड कर सार्वजनिक किया जाएगा.
(3) इस अधिनियम के अन्तर्गत किसी कार्रवाई के सम्बन्ध में लोक सेवक के खिलाफ जांच करना उस कार्रवाई को, या जांच के अधीन किसी मामले के सम्बन्ध में आगे कोई कार्रवाई करने के लिए किसी अन्य लोक सेवक की शक्ति को प्रभावित नहीं करेगा.
(4) यदि इस अधिनियम के तहत प्रारम्भिक जांच के दौरान, लोकपाल प्रथम दृष्टया सन्तुष्ट है कि आरोपों या शिकायतों के परिप्रेक्ष्य में पूरी या आंशिक तौर पर किसी भी तरह की कार्रवाई की सम्भावना है तो वह एक अन्तरिम आदेश के माध्यम से, लोक प्राधिकरण को निर्णय या कार्रवाई के क्रियान्वयन या अमलीकरण पर रोक लगाने की सिफारिश कर सकता है, या ऐसे नियम व शर्तों पर वह बाध्यकारी या निवारक कार्रवाई कर सकता है, जो और ज्यादा नुकसान से रोकने के वह अपने आदेश में उल्लेखित करे. लोक प्राधिकरण इस उप अनुच्छेद के अन्तर्गत आदेश प्राप्त करने के 15 दिन के अन्दर लोकपाल की सिफारिशों पर या तो अमल करेगा या उन्हें नामंजुर करेगा. लोकपाल यदि आवश्यक समझे तो, लोक प्राधिकरण को उपयुक्त निर्देश देने की मांग करते हुए सम्बन्धित उच्च न्यायालय में जा सकता है.
(5) लोकपाल, यदि जांच के दौरान सन्तुष्ट होता है कि किसी मामले में अभियोग शुरू होने की सम्भावना है, या जांच की समाप्ति पर अभिय्ग शुरू करते समय, मामले में सभी आरोपियों की चल अचल सम्पित्ति की सूची बनाएगा और उसे अधिसूचित करेगा. अधिसूचना के पश्चात इस सम्पत्ति के हस्तान्तरण की अनुमति नहीं होगी. अन्तिम सजा की स्थिति में अदालत, अन्य उपायों के अलावा, इस अधिनियम की धारा 19 के अन्तर्गत, इस सम्पत्ति से भ्रष्टाचार के चलते हुई क्षति की वसूली कर सकता है.
(6) यदि शिकायतों की जांच और पूछताछ के दौरान, लोकपाल को लगता है कि सरकारी सेवक के पद पर बने रहना जांच या पूछताछ को प्रतिकूल ढंग से प्रभावित कर सकता है या वह सरकारी सेवक सबूतों को नष्ट या छेड़छाड़ या गवाहों को प्रभावित कर सकता है, तो लोकपाल उस सरकारी सेवक के स्थानान्तरण या निलम्बन की उपयुक्त सिफारिश जारी कर सकता है. लोक प्राधिकरण लोकपाल द्वारा की गई सिफारिश के मिलने के 15 दिन के भीतर इसे उप धारा के अन्तर्गत इसे मान भी सकता है या मना कर सकता है. यदि लोकपाल इसे महत्वपूर्ण मानता है तो वह सम्बन्धित उच्च न्यायालय में जा सकता है और लोक प्राधिकरण के लिए उपयुक्त निर्देश की मांग कर सकता है.
(7) लोकपाल, इस अधिनियम के अन्तर्गत पूछताछ अथवा जांच के किसी भी चरण में, अन्तरिम आदेश के ज़रिए, सक्षम प्राधिकारों को आवश्यक कार्रवाई करने, पूछताछ या जांच रोकने का निर्देश दे सकता है-
क. लोक सेवक के प्रशासनिक कार्य से सार्वजनिक राजस्व अपव्यय को रोकने या सार्वजनिक सम्पत्ति की क्षति के लिए
ख. सरकारी सेवक के कार्यों में कदाचार को रोकने के लिए
ग. सरकारी सेवक द्वारा भ्रष्ट तरीके से अर्जित सम्पत्ति को छिपाने से रोकने के लिए,
इस उप अनुच्छेद के अन्तर्गत लोक प्राधिकरण आदेश प्राप्त करने के 15 दिन के भीतर इस पर अमल करेगा अन्यथा नामंजूर करेगा. यदि लोकपाल इसे महत्वपूर्ण समझे तो वह सम्बन्धित उच्च न्यायालय में जा सकता है और लोक प्राधिकरण के लिए उपयुक्त निर्देश की मांग कर सकता है.
(8) जहां, शिकायत पर जांच के बाद, लोकपाल यह पाता है कि, मन्त्रियों, संसद सदस्यों एवं न्यायधीशों के अतिरिक्त, किसी लोक सेवक के खिलाफ शिकायत में शामिल आरोप की पुष्टि होती है और सम्बन्धित लोक सेवक को अपने पद पर कायम नहीं रहना चाहिए तो वह इस हेतु आदेश जारी कर सकता है, यदि लोकसेवक मन्त्री है तो लोकपाल राष्ट्रपति को ऐसी शिकायत करेगा. राष्ट्रपति द्वारा सिफारिश प्राओत करने के एक माह के अन्दर, उसे स्वीकार करने या नामंजूर करने का निर्णय लिया जाएगा.
परन्तु यह भी कि इस अनुच्छेद के प्रावधान प्रधानमन्त्री पर लागू नहीं होंगे.
(9) लोकपाल के सभी रिकार्ड और सूचनाएं सूचना का अधिकार कानून के तहत सार्वजनिक किए जाएंगे. और यहां तक कि जांच व पूछताछ की स्थिति भी, जब तक कि उस सूचना के जारी करने से किसी जांच व पूछताछ की प्रक्रिया पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़ता हो, उपलब्ध कराए जाएंगे.
भ्रष्टचार के चलते सरकार को होने वाले नुकसान की भरपाई और दण्ड

19. सरकार को होने वाले नुकसान की वसूली: भ्रष्टाचार निरोधक कानून 1988 की धारा 19 के तहत जब कोई व्यक्ति दोषी पाया जाता है, तब परीक्षण न्यायालय, सरकार को हुए नुकसान और दोषी द्वारा भ्रष्टाचार के माध्यम से अर्जित लाभ की गणना कर, इस तरह की कुल राशि को विभिन्न दोषियों के ऊपर आरोपित किया जाएगा और उनकी सम्पत्ति के ज़रिए वसूला जाएगा.

19क. अपराध के लिए सज़ा भ्रष्टाचार निरोधक कानून की उपधारा 2 (4) और उपधारा 28ए के अध्याय iii में विर्णत अपराध के लिए कम से कम एक वर्ष के सश्रम कारावास की सज़ा होगी और इसे उम्रकैद के तक भी बढ़ाया जा सकता है.
दोषी व्यक्ति के सरकार में उच्च पद पर आसीन होने की स्थिति में यह सज़ा और भी कठोर हो सकती है.
इसके अतिरिक्त, बशर्तें कि, अपराध इस अधिनियम की उपधारा 2(4) के तहत विर्णत है और लाभार्थी एक व्यावसायिक इकाई है तो, इस अधिनियम में वर्णित एवं भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अन्तर्गत अन्य सजा के अलावा जनता को हुए नुकसान का की पांच गुना राशि दोषी से जुर्माने के रूप में वसूली जाएगी, अगर दोषी की सम्पत्ति अपर्याप्त है तो यह वसूली व्यावसायिक ईकाई और उसके निदेशकों की व्यक्तिगत सम्पत्ति से वसूली जा सकती है.

उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय के न्यायधीशों के खिलाफ शिकायतों का निपटान
19ख. हाईकोर्ट या सुप्रीमकोर्ट के जजों के खिलाफ शिकायतों की प्राप्ति व निपटाना:
(1) हाईकोर्ट या सुप्रीमकोर्ट के जजों के खिलाफ किसी भी शिकायत को केवल लोकपाल अध्यक्ष ही देखे.
(2) इस तरह की प्रत्येक शिकायत की प्रारम्भिक जांच होगी, जो प्रथम दृष्टया यह आकलन करेगी कि क्या भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत पर्याप्त सबूत हैं. यह जांच लोकपाल के किसी एक सदस्य द्वारा की जाएगी, जो लोकपाल की पूर्ण पीठ के समक्ष इसे प्रस्तुत करेगा. परन्तु यह पूर्ण पीठ, विधिक पृष्टभूमि के कम से कम तीन कानूनी सदस्यों की होगी.
(3) कोई भी मामला विधिक पृष्ठभूमि के सदस्यों के बहुमत वाली पूर्ण पीठ के अनुमोदन के बगैर पंजीकृत नहीं किया जाएगा.
(4) इस तरह के मामलों की जांच एक विशेष टीम द्वारा होगी, जिसका नेतृत्व कम से कम पुलिस अधीक्षक स्तर का अधिकारी करेगा.
(5) अभियोजन आरम्भ करने अथवा न करने का निर्णय भी, लोकपाल की विधिक पृष्ठभूमि के सदस्यों के बहुमत वाली पूर्ण पीठ के द्वारा ही लिया जाएगा.
भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वालों का संरक्षण:

20. भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वालों का संरक्षण:
(1) भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाला कोई व्यक्ति, यदि उसका व्यावसायिक या शारीरिक उत्पीड़न हो रहा हो या ऐसी धमकी दी गई हो तो लोकपाल से सुरक्षा मांग सकता है,
(2) इस तरह की कोई शिकायत मिलने पर लोकपाल निम्न कदम उठाएगा:
क. व्यावसायिक उत्पीड़न: उपयुक्त जांच के बाद अगर लोकपाल महसूस करता है कि इस अधिनियम के तहत आरोप लगाने के बाद भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज वाले को वास्तव में खतरा है तो वह यथाशीघ्र , लेकिन शिकायत मिलने के एक माह से अधिक नहीं, सक्षम अधिकारी को लोकपाल के निर्देशानुसार आवश्यक कदम उठाने का आदेश देगा.
ख. अगर भष्टाचार के विरूद्ध आवाज उठाने वाला शिकायत करता है कि इस अधिनियम के तहत आरोप लगाने के बाद उसका व्यावसायिक उत्पीड़न हुआ है अथवा उसे पेशेगत रूप से नुकसान पहुंचाया गया है और जांच के बाद लोकपाल की यह राय बनती है कि सूचनादाता को वास्तव में नुकसान पहुंचाया गया है तो यथाशीघ्र, लेकिन शिकायत मिलने के एक माह से अधिक नहीं, युक्तियुक्त अधिकारी को लोकपाल के निर्देशानुसार आवश्यक कार्रवाई करने का आदेश देगा.
प्रावधान (क) के तहत लोकपाल धमकी देने वाले या नुकसान पहुंचाने वाले सरकारी अधिकारी के विरुद्ध सुसंगत नियमों के तहत उचित दण्ड का आदेश निर्गत कर सकता है लेकिन प्रावधान (ख) के तहत निश्चित रूप से ऐसा करेगा.
परन्तु प्रभावित सरकारी सेवक को अपना पक्ष रखने का एक अवसर उपलब्ध कराए बिना दंड़ का निर्धारण नहीं किया जा सकेगा.
ग. शारीरिक नुकसान की धमकी: लोकपाल, युक्तियुक्त जांच कराएगा और अगर उसे लगे कि वास्तव में धमकी दी गई है और यह धमकी इस अधिनियम के तहत आरोपण या सूचना के अधिकार के तहत आवेदन करने के वजह से दी गई है, तो किसी भी अन्य कानून के बावजूद लोकपाल अधिकतम एक सप्ताह के अन्दर उपयुक्त अधिकारी के साथ पुलिस को उक्त व्यक्ति को उचित सुरक्षा उपलब्ध कराने के साथ, धमकी देने वालों के विरुद्ध आपराधिक मुकदमा दर्ज कर आवश्यक कार्रवाई करने का निर्देश देगा.
अगर धमकी गम्भीर एवं सिन्नकट है तो लोकपाल तत्काल कार्रवाई करते हुए, कुछ घण्टों के अन्दर उक्त व्यक्ति को शारीरिक हमले से बचाने का उपाय करेगा. अगर शिकायतकर्ता अध्यक्ष या किसी सदस्य से मिलना चाहता है तो वह उनसे फोन या वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए बात करने या व्यक्तिगत रूप से मिलने के लिए अधिकृत होगा.
घ. यदि कोई व्यक्ति शिकायत करता है कि इस अधिनियम के अन्तर्गत आरोप लगाने की वजह से उस पर शारीरिक हमला हुआ है और लोकपाल जांच के बाद इस बात से आश्वस्त होता है कि उस व्यक्ति पर इस अधिनियम के तहत आरोपण या सूचना के अधिकार के तहत आवेदन करने की वजह से हमला हुआ है, तो किसी भी अन्य कानून के बावजूद, लोकपाल ,यथाशीघ्र लेकिन अधिक से अधिक 24 घण्टे के अन्दर सम्बन्धित अधिकारियों को – उक्त व्यक्ति को उचित सुरक्षा उपलब्ध कराने, हमलावरों के विरुद्ध आपराधिक मुकदमा दर्ज कराने के साथ साथ यह भी सुनिश्चित करने कि उस व्यक्ति के साथ दोबारा इस तरह की घटना न हो, के आदेश जारी करेगा. अगर शिकायतकर्ता अध्यक्ष या किसी सदस्य से मिलना चाहता है तो वह उनसे फोन या वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए बात करने या व्यक्तिगत रूप से मिलने के लिए अधिकृत होगा.
(घ क) अगर भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वाला कोई व्यक्ति आरोप लगाता है कि इस अधिनियम के तहत आरोपण या सूचना के अधिकार अधिनियम के इस्तेमाल की वजह से उसके खिलाफ पुलिस या किसी प्राधिकारी ने मामला दर्ज कराया है या मामला दर्ज कराने का उपक्रम किया जा रहा है तो लोकपाल जांच के आधार पर उपयुक्त अधिकारियों को ऐसा मामला वापस लेने का आदेश निर्गत कर सकता है.
(घ ख) शारीरिक नुकसान की धमकी के मामले में या कोई ऐसा व्यक्ति जिस पर हमला हुआ है, देश में कहीं भी लोकपाल के कार्यालय में शिकायत कर सकता है और लोकपाल कार्यालय का यह कर्र्तव्य होगा कि वह उस शिकायत को तत्काल लोकपाल के उपयुक्त अधिकारी तक पहुंचा दे.
(घ ग) लोकपाल भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले को सुरक्षा प्रदान करने का उत्तरदायित्व अपने अधीन किसी सतर्कता अधिकारी को सौंप सकता है और इस मामले में उस अधिकारी को यह अधिकार होगा कि वह उपयुक्त प्राधिकारी जिसमें पुलिस भी शामिल होगी, को उक्त भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले की सुरक्षा सुनिश्चित कराने के लिए आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दे सकता है.
(घ घ) अगर लोकपाल के पास शिकायत के बाद किसी व्यक्ति पर हमला किया जाता है तो लोकपाल के सम्बन्धित अधिकारी को कर्र्तव्य का निर्वहन न कर पाने या मिलीभगत या दोनों का दोषी ठहराया जाएगा, जब तक वह इसकी पुष्टि नहीं कर देता कि उसने अपनी ओर से कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है.
ङ. अगर भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वाला व्यक्ति भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दण्डनीय किसी कृत्या का आरोप लगाता है तो लोकपाल प्रावधान (ग) के मामले के तहत आरोपों की जांच के लिए एक विशेष दल का गठन कर सकता है जो प्राथमिकता के आधार पर एक महीने के भीतर मामले की जांच पूरा करेगा और प्रावधान (घ) के मामलों के तहत निश्चित रूप से ऐसा करेगा.
च. अगर भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाला कोई ऐसा आरोप लगाता है जो भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम से अलग किसी अन्य कानून के तहत दण्डनीय है, तो प्रावधान (ग) के अधीन आने वाले मामले में लोकपाल उस ऐजेंसी, जिसके पास उस कानून को लागू करने का अधिकार है, को सूचनादाता के अरोपों की जांच के लिए विशेष दल बनाने और प्राथमिकता के आधार पर लोकपाल द्वारा निर्धारित समय सीमा के भीतर जांच पूरी करने का निर्देश दे सकता है और प्रावधान (घ) के अधीन आने वाले मामले में लोकपाल निश्चित रूप से ऐसा करेगा.
छ. उपनियम (छ) के अधीन आने वाले मामलों में लोकपाल को उपयुक्त ऐजेंसी को इस तरह की जांच की निगरानी करने और अगर जरूरी हुआ तो लोकपाल के निर्देश के अनुरूप ऐजेंसी को खुद जांच करने का निर्देश जारी करने का अधिकार होगा.
ज. भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वाला, जिसे शारीरिक नुकसान पहुंचाने की धमकी दी गई है या उसे वास्तविक रूप से नुकसान पहुंचाया गया है, सीधे लोकपाल के अध्यक्ष से मिल सकता है और अध्यक्ष 24 घण्टे के भीतर उससे मिलेंगे और अधिनियम के प्रावधानों के मुताबिक उचित कर्रवाई करेंगे.
(3) अगर कोई शिकायतकर्ता अनुरोध करता है कि उसकी पहचान गुप्त रखी जाए तो लोकपाल ऐसा सुनिश्चित करेगा. लोकपाल इस बारे में विस्तृत प्रक्रिया निर्धारित करेगा कि इस तरह की शिकायतों को कैसे आगे बढ़ाया जाएगा.
(4) लोकपाल जुल्म की पुनरावृत्ति रोकने के लिए लोक प्राधिकारियों को नीतियों और प्रक्रिया में आवश्यक परिवर्तन का आदेश निर्गत करेगा.
(5) लोकपाल भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों से शिकायत की प्राप्ति और निपटान के लिए उपयुक्त नियम बनाएगा.

शिकायत निवारण प्रणाली
21. नागरिक घोषणापत्र:
(1) प्रत्येक लोक प्राधिकरण इस अधिनियम के प्रभाव में आने के अधिकतम एक साल के भीतर नागरिक अधिकार पत्र की तैयारी और कार्यान्यवन सुनिश्चित करेगा.
(2) प्रत्येक नागरिक घोषणापत्र में उस लोक प्राधिकरण की कार्य की प्रतिबद्धता के बारे में, प्रत्येक कार्य प्रतिबद्धता को सुनिश्चित करने के लिए ज़िम्मेदार अधिकारियों के बारे में और इसके लिए समय सीमा के बारे में स्पष्ट विवरण होगा.
(3) प्रत्येक लोक प्राधिकरण एक प्राधिकारी नामित करेगा, जिसे लोक शिकायत निवारण अधिकारी कहा जाएगा, जिसके पास शिकायतकर्ता नागरिक घोषणापत्र के उल्लंघन की शिकायतें लेकर जाएंगे.
यह भी कि लोक प्राधिकरण ऐसी हर जगह पर, कम से कम एक लोक शिकायत निवारण अधिकारी नियुक्त करेगा जहां उसका कार्यालय होगा.
लोक शिकायत निवारण अधिकारी विभाग का प्रमुख होगा या उससे एक दर्जे नीचे का अधिकारी, लेकिन अगर किसी जगह विभाग प्रमुख नहीं है तो वहां के सबसे वरिष्ठ अधिकारी को लोक शिकायत निवारण अधिकारी नियुक्त किया जाएगा.
(4) प्रत्येक लोक प्राधिकरण साल में कम से कम एक बार अपने मुख्य सतर्कता अधिकारी की मौजूदगी में सार्वजनिक बैठक कर नागरिक घोषणापत्र की समीक्षा कर और उसमें संशोधन करेगा.
(5) लोकपाल किसी लोक प्राधिकरण को अपने नागरिक घोषणापत्र में परिवर्तन का आदेश निर्गत कर सकेगा और लोक प्राधिकरण को आदेश मिलने के एक सप्ताह के भीतर उक्त परिवर्तन करना होगा.
प्रावधानों के मुताबिक इस तरह के परिवर्तन को लोकपाल की कम से कम तीन सदस्यीय पीठ द्वारा अनुमोदित कराना होगा.
इस तरह के परिवर्तन में नागरिक घोषणापत्र की मौजूदा समय सीमा बढ़नी या वर्णित कार्यों की संख्या घटनी नहीं चाहिए.

21क. शिकायत प्राप्ति व निपटान:
(1) किसी लोक प्राधिकरण का मुख्य सतर्कता अधिकारी उस लोक प्राधिकरण से सम्बन्धित शिकायतों को प्राप्त करने एवं निपटाने के लिए उतनी संख्या में सतर्कता अधिकारी घोषित करेगा जितना उचित लगे, जो कि अपीलीय शिकायत अधिकारी के तौर पर जाने जाएंगे।
(2) यदि कोई नागरिक जन शिकायत निवारण अधिकारी के समक्ष शिकायत करने के एक माह के अन्दर शिकायत का सन्तुष्टिपूर्ण निवारण प्राप्त करने में विफल रहता है तो, अपीलीय शिकायत अधिकारी के समक्ष शिकायत कर सकता है।
परन्तु शिकायत की गम्भीरता एवं तात्कालिकता पर विचार करते हुए अपीलीय शिकायत अधिकारी को यदि महसूस होता है कि, ऐसा करना जरूरी है तो, वह ऐसी शिकायत को जल्द भी स्वीकार करने का निर्णय कर सकता है।
(3) यदि शिकायत उस लोक प्राधिकरण के नागरिक चार्टर में विर्णत मुद्दे से सम्बन्धित नहीं है तो, अपीलीय शिकायत अधिकारी, शिकायत प्राप्त करने के एक माह के अन्दर, या तो शिकायत को नामंजूर करने या आदेश में विर्णत तरीके से उस समय के अन्दर शिकायत के समाधान के लिए लोक प्राधिकरण को निर्देश देते हुए एक आदेश जारी करेगा.
परन्तु यह भी कि शिकायतकर्ता को सुनवाई का अवसर दिये बगैर कोई शिकायत नामंजूर नहीं की जाएगी.
(4) अपीलीय शिकायत अधिकारी को प्रेषित शिकायत को सतर्कता दृष्टिकोण वाली शिकायत समझा जाएगा, यदि:
क. शिकायतकर्ता, सिटिज़न चार्टर में वर्णित मुद्दों के लिए, जन शिकायत निवारण अधिकारी से सन्तुष्टिपूर्ण निवारण पाने में विफल रहा है, अथवा, और
ख. सिटीज़न चार्टर में विर्णत मुद्दों से अतिरिक्त के लिए, यदि इस अनुच्छेद के उप-अनुच्छेद (3) में निर्धारित अपीलीय शिकायत अधिकारी के आदेश का उल्लंघन होता है।
(5) इस अनुच्छेद के उप-अनुच्छेद (4) में वर्णित, हरेक मामले को निम्न तरीके से समाधान किया जाएगा:
क. सुनवाई का वाजिब अवसर देने के बाद, अपीलीय शिकायत अधिकारी शिकायकर्ता की शिकायत को निर्धारित समय में सन्तुष्टिपूर्ण निवारण में विफलता के लिए जिम्मेदारी तय करते हुए आदेश जारी कर सकता है और उस लोक प्राधिकरण के आरेखण एवं संवितरण अधिकारी को आदेश में विर्णत तरीके से उस अधिकारी के वेतन से जुर्माने की रकम वसूलने का निर्देश दे सकता है, अपीलीय शिकायत अधिकारी के निर्देश अनुसार, वह जुर्माना सिटीज़न चार्टर में निदिर्ष्ट समय सीमा पूरा होने के दिन से या उस शिकायत के निवारण के लिए इस अनुच्छेद के उप-अनुच्छेद (3) के अन्तर्गत जारी आदेश में निदिर्ष्ट समय सीमा के दिन से गणना करके प्रतिदिन विलम्ब के लिए रुपये 250 से कम नहीं होना चाहिए।
ख.कथित अधिकारियों के वेतन से वसूली गई रकमों को शिकायतकर्ता को क्षतिपूर्ति के लिए आरेखण एवं संवितरण अधिकारी को निर्देश देना।
(6) इस अनुच्छेद के उप-अनुच्छेद (5) की उपधारा(क) के अन्तर्गत जारी किए जाने वाले आदेश में उल्लेखित अधिकारियों को स्पष्ट करना आवश्यक होगा कि उन्होंने नेकनीयती से कार्य किया है और उनका कोई भ्रष्ट उद्देश्य नहीं है। यदि वे ऐसा करने में विफल रहते हैं तो, अपीलीय शिकायत अधिकारी कथित अधिकारियों के खिलाफ केन्द्रीय नागरिक सेवा विनियम के अन्तर्गत जुर्माना लगाने की सिफारिश करेगा.

21ख. वार्षिक अखण्डता लेखा परीक्षण : समय-समय पर लोकपाल की ओर से तय दिशानिर्देशों के अनुसार लोकपाल हरेक विभाग की वार्षिक अखण्डता लेखा परीक्षण करेगा।
बड़े या छोटे दण्ड का अधिरोपण

21ग. कदाचार के आरोप की शिकायतें सतर्कता अधिकारी के पास की जाएंगी. इन शिकायतों पर वही जांच भी करेगा.

21घ. अनुच्छेद 21क के अन्तर्गत सतर्कता दृष्टिकोण वाली कदाचार एवं जन शिकायतों के आरोप निम्न तरीके से हल किये जाएंगे:
(1) सतर्कता अधिकारी ऐसे हरेक मामले में उसे प्राप्त करने के तीन माह के अन्दर जांच करेगा और मुख्य सतर्कता अधिकारी को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा।
(2) रिपोर्ट प्राप्त करने के एक पखवाड़े के अन्दर, मुख्य सतर्कता अधिकारी उप मुख्य सतर्कता अधिकारियों का तीन सदस्यीय पीठ गठित करेगा, इस पीठ में उपधारा (1) के अन्दर जांच करने वाला अधिकारी ‘शामिल नहीं होगा.
(3) यह पीठ जांच करने वाले सतर्कता अधिकारी, शिकायतकर्ता एवं आरोपी अधिकारी के साथ सारांश सुनवाई करेगी.
(4) यह पीठ दैनिक आधार पर सुनवाई करेगी और आरोपी सरकारी सेवकों पर एक या अधिक छोटे और बड़े दण्ड लगाते हुए आदेश जारी करेगी.
परन्तु ये आदेश पीठ गठित करने के एक माह के अन्दर जारी किये जाएंगे।
साथ ही यह भी कि ऐसे आदेश समुचित निनियोक्ता प्राधिकरण को सिफारिश के स्वरूप में होंगे।
(5) पीठ के आदेश के खिलाफ मुख्य सतर्कता अधिकारी के समक्ष अपील की जा सकेगी, जोकि आरोपी, शिकायतकर्ता एवं पूछताछ करने वाले सतर्कता अधिकारी को सुनवाई का वाजिब अवसर देने के बाद, अधिकतम एक माह के अन्दर अपना आदेश जारी करेगा.

लोकपाल में कर्मचारी और स्टाफ एवं अधिकारी
22. मुख्य सतर्कता अधिकारी:
(1) प्रत्येक लोक प्राधिकरण में एक मुख्य सतर्कता अधिकारी होगा जिसका चयन और नियुक्ति लोकपाल द्वारा की जाएगी.
(2) वह सम्बन्धित लोक प्राधिकरण से नहीं होगा.
(3) वह एक ईमानदार निष्ठावान और भ्रष्टाचार के खिलाफ सक्रिय कार्रवाई करने में योग्य व्यक्ति होगा.
(4) वह किसी भी लोक प्राधिकरण के खिलाफ शिकायत स्वीकार करने के लिए उतरादायी होगा और शिकायत प्राप्त होने के अधिकतम दो दिन के भीतर सम्बन्धित लोक अधिकारी के पास उसे स्थानान्तरित करेगा.
(5) लोकपाल द्वारा समय-समय पर दिए गए दायित्वों के निर्वाह के लिए वह उत्तरदायी होगा, जिनमें, लोकपाल द्वारा समय-समय पर निर्धारित किए गए तरीके से, शिकायतों का निपटान भी शामिल है.
परन्तु जिन शिकायतों के लिए भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तहत जांच आवश्यक है, उन्हें लोकपाल के जांच सम्भाग को स्थानान्तरित किया जाएगा.
साथ ही यह भी कि, संयुक्त सचिव या उससे ऊपर स्तर के अधिकारियों के खिलाफ, काम पूरा न होने की शिकायतों के अतिरिक्त परिवादों को मुख्य सतर्कता अधिकारी नहीं देखेगा और उन्हें लोकपाल को स्थानान्तरित किया जाएगा, जो कि किन्ही तीन अन्य प्राधिकारणों के मुख्य सतर्कता अधिकारियों की एक कमेटी गठित करेगा जो इन शिकायतों की जांच करेगी.
(6) अगर किसी नागरिक को जन शिकायत अधिकारी से इस अधिनियम की धारा 21 के तहत सन्तोषजनक निवारण नहीं मिलता है तो लोकपाल की ओर से मुख्य सतर्कता अधिकारी सभी शिकायतों को प्राप्त करेगा और उसका निपटान करेगा.
(7) लोकपाल के निर्णय के अनुसार समय-समय पर कुछ सतर्कता अधिकारियों की नियुक्ति मुख्य सतर्कता अधिकारी के अधीन की जाएगी.
(8) सतर्कता अधिकारियों एवं मुख्य सतर्कता अधिकारी को ऐसे मामलों में लोकपाल द्वारा केन्द्रीय नागरिक सेवा (आचरण) नियम के अन्तर्गत और समय समय पर लोकपाल द्वारा तय किये जाने वाले नियमों के मुताबिक पूछताछ करने एवं जुर्माना लगाने का अधिकार होगा।

23. लोकपाल के कर्मचारी इत्यादि
(1) इस अधिनियम के अन्तर्गत ऐसे अधिकारी एवं कर्मचारी होंगे जो इस अधिनियम के अन्तर्गत लोकपाल को अपने कार्य को पूरा करने में मदद करने के लिए निर्धारित किये जा सकते हैं।
(2) अधिकारियों एवं कर्मचारियों की संख्या एवं श्रेणी का निर्णय लोकपाल द्वारा किया जाएगा।
(3) उप-अनुच्छेद (1) में वर्णित अधिकरियों, एवं कर्मचारियों की श्रेणियां, भर्ती एवं सेवा की शर्तें वे होंगी जो कि लोकपाल द्वारा निर्धारित की जा सकती हैं, इनमें विशेष शर्तें या विशेष वेतन शामिल हैं जो कि निडर होकर अपना कर्र्तव्य निभाने के लिए सक्षम बनाने के लिए जरूरी हो सकती हैं।
परन्तु यह कि जिस भी अधिकारी की निष्ठा सन्देहास्पद हो, उसे लोकपाल में नियुक्त करने के बारे में विचार नहीं किया जाएगा।
इसके अतिरिक्त यह भी कि सभी अधिकारी एवं कर्मचारी, जो कि लोकपाल में प्रतिनियुक्ति पर या किसी तरह से काम करते हैं, इस धारा के अन्तर्गत निर्धारित एकसमान नियमों एवं शर्तों के योग्य होंगे।
(4) उप-अनुच्छेद (1) के प्रावधानों के प्रति पूर्वाग्रह के बगैर, इस अधिनियम के अन्तर्गत जांच करने के उद्देश्य से लोकपाल निम्न की सेवाएं ले सकता है -
क. केन्द्र सरकार के किसी अधिकारी या जांच एजेंसी; या
ख. किसी अन्य सरकार की पूर्व सहमति से उनका कोई अधिकारी या जांच एजेंसी; या
ग. निजी व्यक्ति सहित, कोई व्यक्ति, या कोई अन्य एजेंसी।
(5) इस उप-अनुच्छेद में जिक्र किये गये अधिकारी एवं कर्मचारी लोकपाल के प्रशासनिक एवं अनुशासनिक नियन्त्रण में होंगे।
(6) लोकपाल को अपने अधिकारी चुनने की शक्ति होगी। लोकपाल सरकारी एजेंसियों से तय समय के लिए प्रतिनियुक्ति पर अधिकारी प्राप्त कर सकता है या अन्य सरकारी एजेंसियों से स्थायी आधार पर अधिकारी प्राप्त कर सकता है या स्थायी आधार पर नियत समय के लिए बाहर से व्यक्ति नियुक्त कर सकता है।
(7) कर्मचारी एवं अधिकारी ऐसे वेतनमान एवं भत्ते के हकदार होंगे, जो कि केन्द्र सरकार के साधारण वेतनमान से अलग एवं ज्यादा हो सकता है, जो कि समय समय पर लोकपाल द्वारा प्रधानमन्त्री के साथ विचार-विमर्श से तय किया जाएगा, ताकि लोकपाल में काम करने के लिए ईमानदार एवं सक्षम लोग आकर्षित हों।
(8) लोकपाल अपने सम्पूर्ण बजटीय बाधाओं के अन्तर्गत, अपने काम के बोझ के अनुसार एवं कार्यरत स्टाफों के सेवा की शर्तों को ध्यान में रखते हुए विभिन्न स्तरों पर अपने कर्मचारी कम करने या बढ़ाने के लिए सक्षम होगा।

24. निरस्त व बचाव करना-
(1) केन्द्रीय सर्तकता आयोग अधिनियम निष्प्रभावी हो जाएगा.
(2) निरस्त होने के बावजूद, इस अधिनियम के अन्तर्गत हुए कोई कार्य या चीज इस अधिनियम के अन्तर्गत की हुई समझी जाएंगी और इस अधिनियम के समतुल्य प्रावधानों के अन्तर्गत जारी और पूरी की जा सकती है।
(3) केन्द्रीय सतर्कता आयोग के समक्ष लंबित सभी पूछताछ एवं जांच और अन्य अनुशासनात्मक कार्यवाही और जिनका निपटारा नहीं हुआ है, वे लोकपाल को हस्तान्तरित की जाएंगी और जारी रहेंगी यदि वे इस अधिनियम के अंतर्गत उनके समक्ष शुरू होती हैं।
(4) किसी अधिनियम में कुछ व्यवस्था भी होने के बावजूद, केन्द्रीय सतर्कता आयोग के सचिव एवं अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों का पद समाप्त किया जाता है और इसके बाद वे लोकपाल के सचिव एवं अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों के तौर पर नियुक्त किये जाते हैं। उस सचिव, अधिकारियों एवं अन्य कर्मचारियों के वेतन, भत्ते एवं सेवा की अन्य नियम व शर्तें, जब तक कि उन्हें बदला न जाए, वहीं होंगी जो इस अधिनियम में शुरू करने के ठीक पहले वे हकदार रहे हैं।
(5) केन्द्र सरकार के सभी विभागों, केन्द्र सरकार के मन्त्रालयों, किसी केन्द्रीय अधिनियम के अन्तर्गत स्थापित निगम, सरकारी कम्पनियां, केन्द्र सरकार की या उनके द्वारा नियन्त्रित सोसायटी एवं स्थानीय प्राधिकरण के नियन्त्रण के अन्तर्गत सभी सतर्कता प्रशासन, सभी उद्देश्यों के लिए अपने अधिकारियों, सम्पत्तियों एवं दायित्त्वों सहित लोकपाल को हस्तान्तरित हो जाएंगे।
(6) उप-अनुच्छेद (5) में विर्णत एजेंसियों की सतर्कता शाखा में कार्यरत अधिकारी लोकपाल में स्थानान्तरित किये जाने वाले तारीख से पांच साल के लिए प्रतिनियुक्ति पर समझे जाएंगे। जबकि, लोकपाल उनमें से किसी को भी व कभी भी उनकी वापसी कर सकता है।
(7) उप-अनुच्छेद (5) के अन्तर्गत लोकपाल को स्थानान्तरित हुए अधिकारियों के विभाग का स्थानान्तरित अधिकारियों के प्रशासन एवं कार्य पर कोई भी नियन्त्रण बन्द हो जाएगा।
(8) लोकपाल अधिकारियों को एक के बाद बदलते रहेंगे और और हरेक विभाग का सतर्कता शाखा इस तरह बनाएंगे कि उसी विभाग का कोई अधिकारी उसी विभाग के सतर्कता कार्य के लिए नियुक्त न हो।
(9) वह व्यक्ति लोकपाल के साथ नियुक्त नहीं होगा जिन पर विचार करते समय उनके खिलाफ कोई भी सतर्कता पूछताछ या आपराधिक मामला लंबित या विचाराधीन हो।

25. लोकपाल की अन्वेषण शाखा-
(1) लोकपाल में एक अन्वेषण शाखा होगी.
(2) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के धारा 17 के प्रावधानों के बावजूद लोकपाल के स्तर निर्धारित किए गए अन्वेषण शाखा के ऐसे अधिकारी इस अधिनियम के अधीन शिकायतों के जांच के सिलसिले में पूरे देश में किसी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकते हैं. उन्हें वे सभी अधिकार, कर्र्तव्य, विशेषाधिकार और दायित्व हासिल होंगे जो किसी घटना की जांच के लिए दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना के सदस्यों को मिले हुए हैं.
(3) दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना को का वह भाग जो भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत सम्बन्धित अपराधों के अन्वेषण और अभियोजन के लिए प्रतिबद्ध होता है, अपने कर्मचारियों, साधनों और देनदारियों समेत सभी प्रयोजनों के लिए लोकपाल को हस्तान्तरित कर दिया जाएगा.
(4) उप-धारा (3) के तहत स्थानान्तरित किया गया दिल्ली विशेष पुलिस विभाग, लोकपाल के सतर्कता विभाग का हिस्सा होगा.
(5) केन्द्रीय सरकार का उस स्थानान्तरित प्रभाग व उनके कर्मचारियों पर कोई अधिकार नहीं होगा.
(6) स्थानान्तरित कर्मचारियों के वेतन, भत्ते और सेवा की अन्य नियम व शर्तें उप धारा (3) के तहत वहीं होंगी, जिनके वे इस अधिनियम के प्रारम्भ होने से तुरन्त पहले योग्य थे.
(7) वे सभी मामले जो कि दिल्ली विशेष पुलिस प्रभाग के पास थे, वे सभी उप धारा (3) के तहत लोकपाल को स्थानान्तरित हो जाएंगे.
(8) किसी मामले की जांच के पूरा होने के बाद, उस मामले को अन्वेषण शाखा लोकपाल की उपयुक्त पीठ के सामने प्रस्तुत करेगी ताकि यह निर्णय लिया जा सके कि उस पर अभियोजन करने की इजाजत है या नहीं.

25क. अभियोजन शाखा- लोकपाल की एक अभियोजन शाखा होगी. किसी मामले में जांच पूरी होने के बाद, जांच शाखा इसे अभियोजन शाखा को अग्रसित कर देगी, जिस पर अभियोजन करने या नहीं करने का निर्णय अभियोजन शाखा लेगी.
परन्तु यह कि लोकपाल द्वारा चिन्हित विशिष्ट श्रेणी के मामलों में लोकपाल की पीठ द्वारा यह निर्णय लिया जाएगा कि इसके अभियोजन की अनुमति देनी है या इंकार करना है.
यह भी कि जांच शाखा से मामला मिलने के दो सप्ताह के भीतर अभियोजन शाखा अभियोजन की अनुमति देने या नहीं देने का निर्णय लेगी, ऐसा नहीं होने की स्थिति में मान लिया जाएगा कि अभियोजन शाखा अभियोजन शुरू करने जा रही है.

26. लोकपाल के अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ शिकायत:
(1) लोकपाल के अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ की गई शिकायत की जांच, इस उपखंड के प्रावधानों के अनुसार , अलग से की जाएगी.
(2) ऐसी शिकायत अपराध के रूप में आरोपित, अथवा भ्रष्टाचार अधिनियम के अनुसार या दुराचार या बेईमानी के मामले की हो सकती है.
(3) लोकपाल में जैसे ही शिकायत दर्ज की जाएगी, शिकायत की सामग्री सहित लोकपाल की वेबसाइट पर प्रदर्शित किया जाएगा,
परन्तु शिकायतकर्ता अगर चाहेगा तो उसकी पहचान नहीं बताई जाएगी.
(4) हर शिकायत की जांच, उसके मिलने के एक माह के भीतर पूरी कर ली जाएगी.
(5) किसी अधिकारी पर लगे आरोपों की जांच भारतीय दण्ड संहिता की धारा 107, 166, 167, 177, 182, 191, 199, 200, 201, 204, 217, 218, 219, 463, 464, 468, 469, 470, 471, 474 के तहत की जाएगी.
(6) अगर जांच के दौरान ऐसा लगा कि लगाए गए आरोप सही हैं तो उस अधिकारी से सारे अधिकार और दायित्व छीन लिए जाएंगे और उसे निलम्बित कर दिया जाएगा.
(7) यदि पूछताछ या जांच पूरी होने के बाद, उस व्यक्ति पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम-1988 के अन्तर्गत अभियोग चलाने का निर्णय लिया जाता है या वह किसी दुर्व्यवहार अथवा गलत तरीके से पूछताछ या जांच करने का दोषी पाया जाता है तो, वह व्यक्ति आगे से लोकपाल के साथ काम नहीं करेगा। यदि वह व्यक्ति लोकपाल में नौकरी पर है तो लोकपाल उस व्यक्ति को नौकरी से निकाल देगा, या यदि वह प्रतिनियुक्ति पर है तो, उसे नौकरी से निकालने की सिफारिश के साथ वापस भेज दिया जाएगा।
परन्तु इस अनुच्छेद के अन्तर्गत आरोपी व्यक्ति का पक्ष सुनने का वाजिब अवसर दिये बगैर कोई आदेश जारी नहीं किया जाएगा।
परन्तु इस अनुच्छेद के अन्तर्गत जांच पूरी करने के लिए 15 दिनों के अन्दर वह आदेश जारी कर दिया जाएगा।
(8) अपने स्टाफ एवं कर्मचारियों के खिलाफ शिकायतों के मामले के सुनवाई तीन सदस्यीय न्यायपीठ करेगी। जबकि, मुख्य सतर्कता अधिकारी या उससे ऊपर के स्तर के अधिकारियों के लिए, लोकपाल की पूर्ण पीठ द्वारा सुनवाई की जाएगी।
(9) लोकपाल यह सुनिश्चित करने के लिए सारे कदम उठायेगा ताकि उसके अपने स्टाफ एवं कर्मचारियों के खिलाफ शिकायतों पर सभी पूछताछ एवं जांच अति पारदर्शी एवं ईमानदारी पूर्ण तरीके से की जाए।

27. बचाव:
(1) किसी अध्यक्ष या सदस्य या किसी अधिकारी के खिलाफ, कर्मचारी, एजेंसी, या व्यक्ति जो अपनी ड्यूटी करते समय अपना दायित्व नेकनीयती से निभाता है तो उसके खिलाफ इस निदिर्ष्ट धारा 14( 4) के तहत गलत आरोप लगाने पर कोई मुकदमा, अभियोग या अन्य कानूनी कार्रवाई नहीं की जाएगी.

विविध
28. सार्वजनिक अधिकारी अपनी सम्पत्ति का ब्यौरा प्रस्तुत करें:
(1) अनुच्छेद 2(12) (क) से (ग) में विर्णत के अलावा, प्रत्येक लोक सेवक इस अधिनियम के शुरू होने के तीन माह के अन्दर और उसके बाद हर साल 30 जून के पहले, लोकपाल द्वारा निर्धारित स्वरूप में, अपने लोक प्राधिकरण के प्रमुख को, अपनी एवं जो अपने परिवार के सदस्यों की सम्पत्तियों एवं जिम्मेदारियों का ब्यौरा प्रस्तुत करेगा। अनुच्छेद 2(12) (क) से (ग) में विर्णत लोकसेवक, लोकपाल को उपरोक्त समय अवधि में, लोकपाल द्वारा निर्धारित स्वरूप में रिटर्न प्रस्तुत करेगा, जिसमें उसकी आय के स्रोत भी शामिल होंगे।
(2) हरेक लोक प्राधिकरण का प्रमुख यह सुनिश्चित करेगा कि ऐसे सभी ब्यौरे उस वर्ष के 31 अगस्त तक वेबसाइट पर डाल दिये जाएं।
(3) यदि उस लोक प्राधिकरण के प्रमुख को उप-अनुच्छेद (1) में निर्धारित समय में किसी लोक सेवक से ऐसा ब्यौरा प्राप्त नहीं होता है तो, उस लोक प्राधिकरण का प्रमुख सम्बन्धित लोक सेवक को ऐसा तत्काल करने का निर्देश देगा। यदि अगले एक माह में, सम्बन्धित लोक सेवक ऐसा ब्यौरा प्रस्तुत नहीं करता है तो, प्रमुख उस लोक सेवक द्वारा वह ब्यौरा प्रस्तुत करने तक उसका वेतन एवं भत्ता रोक देगा.
स्पष्टीकरण – इस अनुच्छेद में “लोक सेवक का परिवार´´ का मतलब पत्नी एवं उसके बच्चे और लोक सेवक के माता पिता, जो उन पर आश्रित हों।
(4) लोकपाल उस लोक सेवक के खिलाफ भारतीय दण्ड संहिता की धारा 176 के अन्तर्गत अभियोग शुरू कर सकता है।

28क. सम्पत्तियों को भ्रष्ट तरीकों से प्राप्त किया गया समझा जाएगा:
(1) किसी लोक सेवक या उसके परिवार के किसी सदस्य के स्वामित्व में ऐसी कोई चल या अचल सम्पत्ति पायी जाती है, जिसे उस लोक सेवक द्वारा इस अनुच्छेद के अन्तर्गत घोषित नहीं की गई थी जो कि इस अनुच्छेद के अन्तर्गत पिछली रिटर्न दाखिल करने से पहले हासिल की गई हैं, तो उसे भ्रष्ट तरीके से अर्जित किया गया समझा जाएगा।
(2) किसी लोक सेवक या उसके परिवार के किसी सदस्य के कब्जे में ऐसी कोई चल या अचल सम्पत्ति पायी जाती है, जो कि इस अनुच्छेद के अन्तर्गत उस लोक सेवक द्वारा घोषित नहीं की गई थी, वह उस लोक सेवक के स्वामित्व में माना जाएगा एवं वह लोक सेवक द्वारा भ्रष्ट तरीके के माध्यम से हासिल किया हुआ समझा जाएगा, उसे अन्यथा साबित करने का दायित्व लोक सेवक का होगा।
(3) किसी लोक सेवक को 15 दिनों के अन्दर इस बात का स्पष्टीकरण देने का एक अवसर दिया जाएगा, कि –
क. इस अनुच्छेद के उप-अनुच्छेद (1) के अन्तर्गत सम्पत्ति होने की स्थिति में, क्या उसने किसी भी पिछले सालों में उस सम्पत्ति को घोषित किया था।
ख. इस अनुच्छेद के उप-अनुच्छेद (2) के अन्तर्गत सम्पत्ति होने की स्थिति में, स्पष्टीकरण देने के लिए कि उसे लोक सेवक के स्वामित्व में क्यों नहीं समझा जाना चाहिए।
(4) यदि लोक सेवक इस अनुच्छेद के उप-अनुच्छेद (3) के अन्तर्गत सन्तुष्टिपूर्ण जवाब प्रदान करने में विफल रहता है तो, लोकपाल ऐसी सभी सम्पत्तियों को जब्त कर लेगा।
(5) इस अनुच्छेद के उप-अनुच्छेद (3) के अन्तर्गत जिसके लिए नोटिस जारी की जाती है, उन सम्पत्तियों का हस्तान्तरण नोटिस जारी करने की तिथि के बाद अमान्य समझी जाएंगी।
(6) लोकपाल, उचित कार्रवाई के लिए ऐसी जानकारी आय कर विभाग को सूचित करेगा.
(7) लोकपाल के उस आदेश के खिलाफ अपील उपयुक्त अधिकार क्षेत्र के उच्च न्यायालय में किया जाएगा, जो अपील दाखिल करने के तीन माह के अन्दर मामले का निर्णय करेगा-
परन्तु, उप-अनुच्छेद (4) के अन्तर्गत लोकपाल के आदेश के 30 दिन बीत जाने के बाद किसी अपील पर विचार नहीं किया जाएगा.
(8) इस अनुच्छेद के अन्तर्गत जब्त समस्त सम्पत्तियों को नीलामी में सबसे ज्यादा बोली लगाने वाले को दी जाएगी। उसकी आधी आय को लोकपाल द्वारा भारत के समेकित कोष में जमा किया जाएगा। शेष रकम को लोकपाल द्वारा अपने खुद के प्रशासन के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.
परन्तु यदि किसी मामले में अपील दाखिल की गई है तो अपील के निपटारे तक कोई नीलामी नहीं होगी.

28ख (1) संसद के किसी चुनाव के पूरा होने के तीन माह के बाद, लोकपाल उम्मीदवार द्वारा भारत के चुनाव आयोग के पास प्रस्तुत सम्पत्ति के ब्यौरे की तुलना आयकर विभाग के उपलब्ध उसके आय के स्रोत से करेगा। जिन मामलों ज्ञात स्रोतों से ज्यादा सम्पत्ति पायी जाती है, वह उपयुक्त कार्यवाही शुरू करेगा।
(2) किसी संसद सदस्य के खिलाफ यह आरोप लगता है कि उसने संसद में मतदान करने या संसद में सवाल उठाने या अन्य किसी विषय सहित संसद के किसी व्यवस्था में रिश्वत ली है तो, संसद सदस्य जिस सदन का सदस्य है तदानुसार, लोकसभा स्पीकर या राज्य सभा अध्यक्ष के पास शिकायत की जा सकती है. ऐसी शिकायतों पर निम्न तरीके से सुनवाई होगी:
क. शिकायत प्राप्त होने के एक माह के अन्दर उसे आचारनीति समिति के पास आगे भेजा जाएगा।
ख. आचारनीति समिति एक माह के अन्दर निर्णय करेगी कि उस पर क्या किया जाना है।

29 प्रतिनिधियों को कार्यभार सौंपने की शक्ति:
(1) लोकपाल अपने मातहतों को शक्तियां और कार्य सौंपने का अधिकारी होगा.
(2) ऐसे अधिकारियों की ओर से अपनी शक्तियों का प्रयोग कर जो कार्य किए जाएगा, उसे लोकपाल द्वारा किया माना जाएगा.
परन्तु नीचे लिखे गए कार्य पीठ द्वारा ही पूरे किए जाएंगे और इन्हें किसी और पर प्रत्यायोजित नहीं किया जाएगा.
क. किसी मामले में अभियोजन शुरू करने का आदेश देना.
ख. सीसीएस संचालित नियमों के अनुसार किसी सरकारी कर्मचारी को बर्खास्त करना.
ग. अनुभाग 10 के अन्तर्गत लोकपाल के अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ शिकायत पर आदेश जारी करना.
घ. संयुक्त सचिव और उससे ऊपर के अधिकारियों के खिलाफ मामलों की शिकायतों पर आदेश जारी करना.

30. समय सीमा:
(1) अनुभाग 9 के उपभाग (1) के अंर्तगत इस अधिनियम में प्रारम्भिक जांच शिकायत प्राप्त होने के एक महीने में पूरी हो जानी चाहिए.
परन्तु अगर जांच निर्धारित समय सीमा के भीतर पूरी नहीं होती है, तो जांच अधिकारी को इसका कारण बताने के लिए ज़िम्मेदार माना जाएगा.
(2) किसी आरोप की जांच शिकायत मिलने से छह महीने और किसी भी परिस्थिति में एक वर्ष के भीतर पूरी की जाएगी .
(3) लोकपाल की ओर से दायर अभियोजन पर सुनवाई एक वर्ष के भीतर पूरी हो जानी चाहिए. स्थगन अति विशिष्ट परिस्थितियों में ही दिए जाने चाहिए.
30क. पारदर्शिता और सूचना के अधिकार के लिए प्रार्थना पत्र:
(1) लोकपाल हर सूचना को वेबसाइट पर मुहैया कराने का हर सम्भव प्रयास करेगा.
(2) किसी मामले की जांच पूरी हो जाने के बाद, उससे जुड़े सभी दस्तावेज आम जनता के लिए उपलब्ध होंगे. लोकपाल को यह दस्तावेज वेबसाइट पर डालने का यथासम्भव प्रयास करना होगा.
परन्तु, जानकारी देते समय इस तथ्य का ध्यान रखा जाए कि जिस व्यक्ति ने अपनी पहचान छुपाने की बात कही है और कोई ऐसी सूचना जिससे देश की आन्तरिक और बाह्य सुरक्षा को खतरा हो, को प्रकट नहीं किया जाएगा.

31. विशिष्ट शिकायतों पर जुर्माना:
(1) इस अधिनियम में उल्लेखित होने के बावजूद, यदि कोई व्यक्ति इस अधिनियम के अन्तर्गत कोई ऐसी शिकायत करता है, जिसमें कोई आधार या साक्ष्य का अभाव हो और वह किसी प्राधिकारों को तंग करने के लिए लोकपाल को की गई हो, तो, लोकपाल शिकायतकर्ता पर जो उचित समझे वह जुर्माना लगा सकता है, लेकिन किसी एक मामले में कुल जुर्माना रुपये एक लाख से ज्यादा नहीं होगा।
परन्तु सुनवाई का वाजिब अवसर दिये बगैर कोई जुर्माना नहीं लगाया जा सकता।
इसके साथ ही यह भी कि सिर्फ इसलिए कि इस अधिनियम के अन्तर्गत जांच के बाद मामला साबित नहीं हो पाया हो, तो इस अनुच्छेद के उद्देश्य के लिए शिकायतकर्ता के खिलाफ ऐसा नहीं किया जाएगा.
(2) वह जुर्माना भूमि राजस्व अधिनियम के अन्तर्गत बकाया अनुसार वसूले जा सकने योग्य होगा.
(3) इस अधिनियम के अन्तर्गत एक बार जो शिकायत या आरोप कर दी गई हो उसे वापस लेने की अनुमति नहीं होगी.

31क. निवारक उपाय:
(1) लोकपाल, नियमित समय अन्तराल पर, अपने अधिकार क्षेत्र में पड़ने वाले सभी लोक प्राधिकरण के कार्य पद्धति का या तो स्वयं अथवा किसी अन्य के माध्यम से अध्ययन करेगा और सम्बन्धित लोक प्राधिकरण से विचार-विमर्श करके, ऐसे निर्देश जारी करेगा जिसे वह भविष्य में भ्रष्टाचार की घटनाओं को रोकने के लिए उचित समझे।
(2) लोकपाल इस अधिनियम के बारे जागरूकता उत्पन्न करने एवं आम जनता को भ्रष्टाचार रोकने में शामिल करने के लिए भी उत्तरदायी होगा।

31ख. पुरस्योजना:
(1) लोकपाल को सरकार के भीतर और बाहर भ्रष्टाचार के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने वाले व्यक्तियों को पुरस्कृत कर, आम जनता को प्रोत्साहित करना चाहिए.
(2) लोकपाल को इस तरह की योजना लागू करने के लिए भी तैयार रहना चाहिए जिसमें शिकायतकर्ता को आर्थिक तौर पर भी पुरस्कृत किया जा सके. लेकिन, यह पुरस्कार राशि भ्रष्टाचार से होने वाले नुकसान की 10 फीसदी से अधिक नहीं होनी चाहिए.

32. कानून बनाने का अधिकार:
(1) सरकार अधिकारिक गजट में अधिसूचना के द्वारा इस अधिनियम के प्रावधानों को प्रभाव में लाने के उद्देश्य से नियम बनाएगी।
परन्तु ऐसे नियम केवल लोकपाल से विचार-विमर्श करके ही बनाये जाएंगे।
(2) खासकर, एवं पूर्वगामी प्रावधानों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बगैर, ऐसे नियम निम्न प्रदान कर सकते हैं :
क. लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्यों को देय भत्ते, पेंशन और अन्य सेवा शर्तों के संबंध में;
ख. अनुभाग 11 के उपभाग (2) के खण्ड (एच) के अन्तर्गत लोकपाल के पास एक सिविल अदालत की शक्तियां प्राप्त होनीं चाहिए.
(2क) लोकपाल को सुचारू रूप से चलाने के लिए लोकपाल को अपने नियम बनाने की छूट होनी चाहिए.
क. लोकपाल के स्टाफ और कर्मचारियों आदि के वेतन, भत्ते, भर्ती और अन्य सेवाओं के बारे में;
ख. लोकपाल में मामले दर्ज कराने और कार्यवाही शुरू करने की प्रक्रिया.
ग. इसके साथ ही कोई अन्य विषय, जिसमें इस अधिनियम के अंर्तगत कानून बनाना जरूरी हो.
(3) इस अधिनियम के अन्तर्गत बने किसी नियम को पूर्वव्यापी प्रभाव के साथ बनाया जा सकता है और जब ऐसा नियम बनाया जाता है तो संसद के दोनों सदनो के समक्ष वक्तव्य में नियम बनाने की वजह को स्पष्ट किया जाएगा.
(4) लोकपाल इस अधिनियम में विभिन्न प्रावधानों में वर्णित समय सीमा का कड़ाई से पालन करेगा. इसे हासिल करने के लिए, लोकपाल हरेक स्तर के पदाधिकारी के लिए मानक तय करेगा और कार्य के बोझ के अनुसार अतिरिक्त संख्या में पदाधिकारियों एवं बजट की जरूरत का आकलन करेगा.

32क. यह लोकपाल का कर्र्तव्य होगा कि अपने स्टाफ को नियमित अन्तराल में प्रशिक्षित करे और उनके कौशल में सुधार के लिए अन्य सभी कदम उठाये और लोगों के साथ व्यवहार करने के सोच में बदलाव लाए।
लोकपाल को हर स्पर होने वाले कार्य के मानदण्डों को सूचीबद्ध करना होगा. इसके बाद कार्य की मात्रा को ध्यान में रखते हुए अतिरिक्त लोगों की भर्ती की जरूरत और बजट का हिसाब लगाना होगा.

33. कठिनाइयों को दूर करना :- इस अधिनियम में कुछ भी होने के बावजूद, राष्ट्रपति, लोकपाल के साथ विचार-विमर्श करके या लोकपाल के निवेदन पर निम्न आदेश, ऐसे प्रावधान कर सकता है-
(1) इस अधिनियम के प्रावधानों को प्रभावी संचालन में लाने के लिए
(2) केन्द्रीय सतर्कता आयोग के समक्ष लंबित पूछताछ एवं जांच को लोकपाल द्वारा जारी रखने के लिए।

34 . कानून बनाने की शक्ति :- संस्था के अबाध क्रियाकलाप एवं इस अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए लोकपाल को अपने विनियम बनाने का अधिकार होगा।

35. यह अधिनियम अन्य सभी कानूनों के प्रावधानों से सर्वोपरि होगा।

Thursday, October 21, 2010

Live in Relation in the light of latest Judbment from Supreme Court of India

IN THE SUPREME COURT OF INDIA

Bench: M Katju, T Thakur

CRIMINAL APPELLATE JURISDICTION

CRIMINAL APPEAL NOS. 2028-2029__OF 2010

[Arising out of Special Leave Petition (Crl.) Nos.2273-2274/2010]

D. Velusamy  -versus- D. Patchaiammal

Judgment Delivered on 21 October, 2010

Cites 17 docs - [View All]
The Code Of Criminal Procedure, 1973
The Protection Of Women From Domestic Violence Act, 2005
The Indian Penal Code, 1860
Section 125 in The Code Of Criminal Procedure, 1973
Section 2(s) in The Code Of Criminal Procedure, 1973

JUDGMENT

Markandey Katju, J.

1. Leave granted.

2. Heard learned counsel for the appellant. None has appeared for the respondent although she has been served notice. We had earlier requested Mr. Jayant Bhushan, learned Senior counsel to assist us as Amicus Curiae in 2 the case, and we record our appreciation of Mr. Bhushan who was of considerable assistance to us.

3. These appeals have been filed against the judgment of the Madras High Court dated 12.10.2009.

4. The appellant herein has alleged that he was married according to the Hindu Customary Rites with one Lakshmi on 25.6.1980. Out of the wedlock with Lakshmi a male child was born, who is now studying in an Engineering college at Ooty. The petitioner is working as a Secondary Teacher in Thevanga Higher Secondary School, Coimbatore.

5. It appears that the respondent-D. Patchaiammal filed a petition under Section 125 Cr.P.C. in the year 2001 before the Family Court at Coimbatore in which she alleged that she was married to the appellant herein on 14.9.1986 and since then the appellant herein and she lived together in her father's house for two or three years. It is alleged in the petition that after two or three years the appellant herein left the house of the respondent's father and started living in his native place, but would visit the respondent occasionally.

6. It is alleged that the appellant herein (respondent in the petition under Section 125 Cr.P.C.) deserted the respondent herein (petitioner in the proceeding under Section 125 Cr.P.C.) two or three years after marrying her in 1986. In her petition under Section 125 Cr.P.C. she alleged that she did not have any kind of livelihood and she is unable to maintain herself whereas the respondent (appellant herein) is a Secondary Grade Teacher drawing a salary of Rs.10000/- per month. Hence it was prayed that the respondent (appellant herein) be directed to pay Rs.500/- per month as maintenance to the petitioner.

7. In both her petition under Section 125 Cr.P.C. as well as in her deposition in the case the respondent has alleged that she was married to the appellant herein on 14.9.1986, and that he left her after two or three years of living together with her in her father's house.

8. Thus it is the own case of the respondent herein that the appellant left her in 1988 or 1989 (i.e. two or three years after the alleged marriage in 1986). Why then was the petition under Section 125 Cr.P.C. filed in the year 2001, i.e. after a delay of about twelve years, shall have to be satisfactorily explained by the respondent. This fact also creates some doubt about the case of the respondent herein.

9. In his counter affidavit filed by the appellant herein before the Family Court, Coimbatore, it was alleged that the respondent (appellant herein) was married to one Lakshmi on 25.6.1980 as per the Hindu Marriage rites and customs and he had a male child, who is studying in C.S.I. Engineering college at Ooty. To prove his marriage with Lakshmi the appellant produced the ration card, voter's identity card of his wife, transfer certificate of his son, discharge certificate of his wife Lakshmi from hospital, photographs of the wedding, etc.

10. The learned Family Court Judge has held by his judgment dated 5.3.2004 that the appellant was married to the respondent and not to Lakshmi. These findings have been upheld by the High Court in the impugned judgment.

11. In our opinion, since Lakshmi was not made a party to the proceedings before the Family Court Judge or before the High Court and no notice was issued to her hence any declaration about her marital status vis-`- vis the appellant is wholly null and void as it will be violative of the rules of natural justice. Without giving a hearing to Lakshmi no such declaration could have validly be given by the Courts below that she had not married the appellant herein since such as a finding would seriously affect her rights. And if no such declaration could have been given obviously no declaration could validly have been given that the appellant was validly married to the respondent, because if Lakshmi was the wife of the appellant then without divorcing her the appellant could not have validly married the respondent.

12. It may be noted that Section 125 Cr.P.C. provides for giving maintenance to the wife and some other relatives. The word `wife' has been defined in Explanation (b) to Section 125(1) of the Cr.P.C. as follows : "Wife includes a woman who has been divorced by, or has obtained a divorce from, her husband and has not remarried."

13. In Vimala (K) vs. Veeraswamy (K) [(1991) 2 SCC 375], a three- Judge Bench of this Court held that Section 125 of the Code of 1973 is meant to achieve a social purpose and the object is to prevent vagrancy and destitution. Explaining the meaning of the word `wife' the Court held: "..the object is to prevent vagrancy and destitution. It provides a speedy remedy for the supply of food, clothing and shelter to the deserted wife. When an attempt is made by the husband to negative the claim of the neglected wife depicting her as a kept-mistress on the specious plea that he was already married, the court would insist on strict proof of the earlier marriage. The term `wife' in Section 125 of the Code of Criminal Procedure, includes a woman who has been divorced by a husband or who has obtained a divorce from her husband and has not remarried. The woman not having the legal status of a wife is thus brought within the inclusive definition of the term `wife' consistent with the objective. However, under the law a second wife whose marriage is void on account of the survival of the first marriage is not a legally wedded wife, and is, therefore, not entitled to maintenance under this provision."

14. In a subsequent decision of this Court in Savitaben Somabhat Bhatiya vs. State of Gujarat and others, AIR 2005 SC 1809, this Court held that however desirable it may be to take note of the plight of an unfortunate woman, who unwittingly enters into wedlock with a married man, there is no scope to include a woman not lawfully married within the expression of `wife'. The Bench held that this inadequacy in law can be amended only by the Legislature.

15. Since we have held that the Courts below erred in law in holding that Lakshmi was not married to the appellant (since notice was not issued to her and she was not heard), it cannot be said at this stage that the respondent herein is the wife of the appellant. A divorced wife is treated as a wife for the purpose of Section 125 Cr.P.C. but if a person has not even been married obviously that person could not be divorced. Hence the respondent herein cannot claim to be the wife of the appellant herein, unless it is established that the appellant was not married to Lakshmi.

16. However, the question has also be to be examined from the point of view of The Protection of Women from Domestic Violence Act, 2005. Section 2(a) of the Act states :

"2(a) "aggrieved person" means any woman who is, or has been, in a domestic relationship with the respondent and who alleges to have been subjected to any act of domestic violence by the respondent";

Section 2(f) states :

"2(f) "domestic relationship" means a relationship between two persons who live or have, at any point of time, lived together in a shared household, when they are related by consanguinity, marriage, or through a relationship in the nature of marriage, adoption or are family members living together as a joint family"; Section 2(s) states :

"2(s) "shared household" means a household where the person aggrieved lives or at any stage has lived in a domestic relationship either singly or along with the respondent and includes such a household whether owned or tenanted either jointly by the aggrieved person and the respondent, or owned or tenanted by either of them in respect of which either the aggrieved person or the respondent or both jointly or singly have any right, title, interest or equity and includes such a household which may belong to the joint family of which the respondent is a member, irrespective of whether the respondent or the aggrieved person has any right, title or interest in the shared household."

Section 3(a) states that an act will constitute domestic violence in case it-

"3(a) harms or injures or endangers the health, safety, life, limb or well-being, whether mental or physical, of the aggrieved person or tends to do so and includes causing physical abuse, sexual abuse, verbal and emotional abuse and economic abuse;" or

(emphasis supplied)

17. The expression "economic abuse" has been defined to include : "(a) deprivation of all or any economic or financial resources to which the aggrieved person is entitled under any law or custom whether payable under an order of a court or otherwise or which the aggrieved person requires out of necessity including, but not limited to, household necessities for the aggrieved person and her children, if any, stridhan, property, jointly or separately owned by the aggrieved person, payment of rental related to the shared household and maintenance".

(emphasis supplied)

18. An aggrieved person under the Act can approach the Magistrate under Section 12 for the relief mentioned in Section 12(2). Under Section 20(1)(d) the Magistrate can grant maintenance while disposing of the application under Section 12(1).

19. Section 26(1) provides that the relief mentioned in Section 20 may also be sought in any legal proceeding, before a civil court, family court or a criminal court.

20. Having noted the relevant provisions in The Protection of Women from Domestic Violence Act, 2005, we may point out that the expression `domestic relationship' includes not only the relationship of marriage but also a relationship `in the nature of marriage'. The question, therefore, arises as to what is the meaning of the expression `a relationship in the nature of marriage'. Unfortunately this expression has not been defined in the Act. Since there is no direct decision of this Court on the interpretation of this expression we think it necessary to interpret it because a large number of cases will be coming up before the Courts in our country on this point, and hence an authoritative decision is required.

21. In our opinion Parliament by the aforesaid Act has drawn a distinction between the relationship of marriage and a relationship in the nature of marriage, and has provided that in either case the person who enters into either relationship is entitled to the benefit of the Act. 1

22. It seems to us that in the aforesaid Act of 2005 Parliament has taken notice of a new social phenomenon which has emerged in our country known as live-in relationship. This new relationship is still rare in our country, and is sometimes found in big urban cities in India, but it is very common in North America and Europe. It has been commented upon by this Court in S. Khushboo vs. Kanniammal & Anr. (2010) 5 SCC 600 (vide para 31).

23. When a wife is deserted, in most countries the law provides for maintenance to her by her husband, which is called alimony. However, earlier there was no law providing for maintenance to a woman who was having a live-in relationship with a man without being married to him and was then deserted by him.

24. In USA the expression `palimony' was coined which means grant of maintenance to a woman who has lived for a substantial period of time with a man without marrying him, and is then deserted by him (see `palimony' on Google). The first decision on palimony was the well known decision of the California Superior Court in Marvin vs. Marvin (1976) 18 C3d660. This case related to the famous film actor Lee Marvin, with whom a lady Michelle lived for many years without marrying him, and was then deserted by him and she claimed palimony. Subsequently in many decisions of the Courts in USA, the concept of palimony has been considered and developed. The US Supreme Court has not given any decision on whether there is a legal right to palimony, but there are several decisions of the Courts in various States in USA. These Courts in USA have taken divergent views, some granting palimony, some denying it altogether, and some granting it on certain conditions. Hence in USA the law is still in a state of evolution on the right to palimony.

25. Although there is no statutory basis for grant of palimony in USA, the Courts there which have granted it have granted it on a contractual basis. Some Courts in USA have held that there must be a written or oral agreement between the man and woman that if they separate the man will give palimony to the woman, while other Courts have held that if a man and woman have lived together for a substantially long period without getting married there would be deemed to be an implied or constructive contract that palimony will be given on their separation.

26. In Taylor vs. Fields (1986) 224 Cal. Rpr. 186 the facts were that the plaintiff Taylor had a relationship with a married man Leo. After Leo died Taylor sued his widow alleging breach of an implied agreement to take care of Taylor financially and she claimed maintenance from the estate of Leo. The Court of Appeals in California held that the relationship alleged by Taylor was nothing more than that of a married man and his mistress. It was held that the alleged contract rested on meretricious consideration and hence was invalid and unenforceable. The Court of Appeals relied on the fact that Taylor did not live together with Leo but only occasionally spent weekends with him. There was no sign of a stable and significant cohabitation between the two.

27. However, the New Jersey Supreme Court in Devaney vs. L' Esperance 195 N.J., 247 (2008) held that cohabitation is not necessary to claim palimony, rather "it is the promise to support, expressed or implied, coupled with a marital type relationship, that are indispensable elements to support a valid claim for palimony". A law has now been passed in 2010 by the State legislature of New Jersey that there must be a written agreement between the parties to claim palimony.

28. Thus, there are widely divergent views of the Courts in U.S.A. regarding the right to palimony. Some States like Georgia and Tennessee expressly refuse to recognize palimony agreements. 1

29. Written palimony contracts are rare, but some US Courts have found implied contracts when a woman has given up her career, has managed the household, and assisted a man in his business for a lengthy period of time. Even when there is no explicit written or oral contract some US Courts have held that the action of the parties make it appear that a constructive or implied contract for grant of palimony existed.

30. However, a meretricious contract exclusively for sexual service is held in all US Courts as invalid and unenforceable.

31. In the case before us we are not called upon to decide whether in our country there can be a valid claim for palimony on the basis of a contract, express or implied, written or oral, since no such case was set up by the respondent in her petition under Section 125 Cr.P.C.

32. Some countries in the world recognize common law marriages. A common law marriage, sometimes called de facto marriage, or informal marriage is recognized in some countries as a marriage though no legally recognized marriage ceremony is performed or civil marriage contract is entered into or the marriage registered in a civil registry (see details on Google).

33. In our opinion a `relationship in the nature of marriage' is akin to a common law marriage. Common law marriages require that although not being formally married :-

(a) The couple must hold themselves out to society as being akin to spouses.

(b) They must be of legal age to marry.

(c) They must be otherwise qualified to enter into a legal marriage, including being unmarried.

(d) They must have voluntarily cohabited and held themselves out to the world as being akin to spouses for a significant period of time.

(see `Common Law Marriage' in Wikipedia on Google) In our opinion a `relationship in the nature of marriage' under the 2005 Act must also fulfill the above requirements, and in addition the parties must have lived together in a `shared household' as defined in Section 2(s) of the Act. Merely spending weekends together or a one night stand would not make it a `domestic relationship'.

34. In our opinion not all live in relationships will amount to a relationship in the nature of marriag8e to get the benefit of the Act of 2005. To get such benefit the conditions mentioned by us above must be satisfied, and this has to be proved by evidence. If a man has a `keep' whom he maintains financially and uses mainly for sexual purpose and/or as a servant it would not, in our opinion, be a relationship in the nature of marriage'

35. No doubt the view we are taking would exclude many women who have had a live in relationship from the benefit of the 2005 Act, but then it is not for this Court to legislate or amend the law. Parliament has used the expression `relationship in the nature of marriage' and not `live in relationship'. The Court in the grab of interpretation cannot change the language of the statute.

36. In feudal society sexual relationship between man and woman outside marriage was totally taboo and regarded with disgust and horror, as depicted in Leo Tolstoy's novel `Anna Karenina', Gustave Flaubert's novel `Madame Bovary' and the novels of the great Bengali writer Sharat Chandra Chattopadhyaya.

37. However, Indian society is changing, and this change has been reflected and recognized by Parliament by enacting The Protection of Women from Domestic Violence Act, 2005.

38. Coming back to the facts of the present case, we are of the opinion that the High Court and the learned Family Court Judge erred in law in holding that the appellant was not married to Lakshmi without even issuing notice to Lakshmi. Hence this finding has to be set aside and the matter remanded to the Family Court which may issue notice to Lakshmi and after hearing her give a fresh finding in accordance with law. The question whether the appellant was married to the respondent or not can, of course, be decided only after the aforesaid finding.

39. There is also no finding in the judgment of the learned Family Court Judge on the question whether the appellant and respondent had lived together for a reasonably long period of time in a relationship which was in the nature of marriage. In our opinion such findings were essential to decide this case. Hence we set aside the impugned judgment of the High Court and Family Court Judge, Coimbatore and remand the matter to the Family Court Judge to decide the matter afresh in accordance with law and in the light of the observations made above. Appeals allowed.

....................................J.

(MARKANDEY KATJU)

.....................................J.

(T. S. THAKUR)

NEW DELHI;

21st OCTOBER, 2010
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